शिव का रुद्राभिषेक कैसे करें-
भगवान शिव, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक माने जाते हैं। शिव को "महादेव", "शिवजी", "नाथ" और "भोलेंनाथ" जैसे विभिन्न नामों से पूजा जाता है। उन्हें मुख्य विशेषताओं के लिए हिंदू धर्म का प्रमुख देवता माना जाता है।
अर्थ और गुण: शिव शंकर का अर्थ "शिव" होता है, जिसका मतलब होता है "शुद्ध" और "पवित्र।" वे संसार के विनाशक और पुनर्निर्माणकर्ता के रूप में पूजे जाते हैं।
आकृति और प्रतीक: शिव की आकृति अक्सर त्रिनेत्र, जटा, और अर्ध चंद्रमा के साथ होती है। उनका वृषभ (बैल) उनके वाहन के रूप में जाना जाता है।
संघ और परिवार: शिव माता पार्वती के पति हैं और उनके दो पुत्र गणेश और कार्तिकेय हैं। उनका परिवार हिंदू पंथ में आदर्श परिवार का प्रतीक है।
साधना और ध्यान: शिव ध्यान और योग के देवता भी माने जाते हैं। उनके उपासक ध्यान और साधना के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करते हैं।
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रुद्र अभिषेक का महत्व-
रुद्राभिषेक एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति के साथ अभिषेक किया जाता है ।
आध्यात्मिक शांति: रुद्राभिषेक से मन को गहरी शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह ध्यान और साधना के माध्यम से आंतरिक शांति और आत्मज्ञान को बढ़ावा देता है।
पापों का नाश: यह पूजा पापों के नाश के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। रुद्राभिषेक से व्यक्ति को अपने पूर्वजन्म के पापों और गलतियों से मुक्ति मिलती है।
आर्थिक समृद्धि: यह पूजा आर्थिक समृद्धि और धन लाभ के लिए भी की जाती है। रुद्राभिषेक से आर्थिक संकटों से मुक्ति और धन की वृद्धि होती है।
स्वास्थ्य और सुरक्षा: रुद्राभिषेक का नियमित पालन शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार लाता है और जीवन को सुरक्षित बनाता है। यह बीमारियों और मानसिक तनाव से राहत प्रदान करता है।
पारिवारिक समृद्धि: यह पूजा पारिवारिक सुख और शांति के लिए भी की जाती है। यह परिवार में सामंजस्य और प्रेम बनाए रखने में सहायक होती है।
: रुद्राभिषेक से भक्त शिव के प्रति अपनी कृतज्ञता और प्रेम प्रकट करते हैं। यह उनकी भक्ति और समर्पण को प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।
रुद्राभिषेक को श्रद्धा और सही विधि-विधान से करना महत्वपूर्ण होता है। यह पूजा भगवान शिव के आशीर्वाद को प्राप्त करने और जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि को प्राप्त करने के लिए प्रभावी मानी जाती है।.
अभिषेक कैसे करें-
शुद्ध जल, गंगाजल अथवा दुग्धादि से निम्न मंत्रों का पाठ करते हुए शिवलिंग का अभिषेक करें:
ॐ नमस्ते रूद्र मन्यव उतो त इषये नमः।
बाहुभ्यामुत ते नमः।।
या ते रूद्र शिव तनूरघोराऽपापकाशिनी।
तया नस्तन्या शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि।।
यामिषु गिरिशन्त हस्ते विमर्थ्यस्तवे।
शिवा गिरत्रि तां कुरु मा हिं सीः पुरूषं जगत्।।
शिवेन वचसा त्या गिरिशाच्छा वादामसि।
यथा नः सर्वमिज्जगदयक्ष्म सुमना असत्।।
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्।
अहींश्च सर्वाञ्जम्मयन्तसर्वाश्च यातुधन्योऽधराचीः परा सुव।।
असी यस्ताम्रों अरूण उत बभ्रुः सुमंगलः।
ये चैन रूद्रा अभितो दिक्षु श्रिताः सहस्रशोऽवैषा हेड ईमहे।।
असी योऽवसर्पाति नीलग्रीवो विलोहितः।
उतेन गोपा अदृश्रन्नदश्रन्नुवहार्यः स दृष्टो मृडयाति नः।।
नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीदुधे।
अथो ये अस्य सत्वानोऽहं तेभ्योऽकर नमः।।
प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुमयोरात्र्योर्य्याम्।
याश्च ते हस्त इषवः परा ता भगवो वप।।
विज्यं धनुः कपर्दिनो विशल्यो वाणवों 2 उत।
अनेशन्नस्य या इषव आमुरस्य निषंगधिः।।
या ते हेतिर्मीढुष्टम हस्ते बमूव ते धनुः।
तयाऽस्मानिवश्यतस्त्वमयक्ष्मया परि मुज।।
परि ते धन्वनो हेतिरस्मान्वृणक्तु विश्वतः।
अथो य इषुधिस्तवारे अस्मन्नि धेहि तम्।।
अवतल्य धनुष्ट्व सहस्राक्ष शतेषुधे।
निशीर्य शल्यानां मुखा शियो नः सुमना मव।।
नमस्त आयुध्यानातताय धृष्णवे।
उभाभ्यामुत ते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने।।
मा नो महान्तमुत मा नो अर्भक मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्।
मा नो वधीः पितर मौत मातरं मा नः प्रियास्तन्यो रूद्र रीरिषः।।
मा नस्तोके तनये मा न आयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः।
मा नो वीरान् रूद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्तः सदमित् त्वा हवामहे।।
अभिषेक के अनन्तर शुद्धोदक-स्नान कराएं।
तत्पश्चात् 'ॐ द्यौः शान्तिः' इत्यादि शान्तिक मंत्रों का पाठ करते हुए शान्त्यभिषेक करना चाहिए। तदनन्तर भगवान् को आचमन कराकर उतारांग पूजन करें।
रुद्राभिषेक की पूजन सामग्री
वस्त्र-
प्रयच्छ मे।। श्री भगवते साम्दशिवाय नमः। वस्त्र समर्पयामि (चढ़ाएं)।
आचमन-
श्री भगवते साम्यशिवाय नमः। वस्त्रान्ते आचमनीय जल समर्पयामि। (आचमन के लिये जल चढ़ाएं।)
उपवस्त्र-
उपवरत्र प्रयच्चामि देवाय परमात्मने। भक्ताय समर्पित देव प्रसीद परमेश्वर।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। उपवस्त्र (अथवा उपवस्त्राये सूजम्) समर्पयामि। (उपवस्त्र चढ़ाएं।)
आचमन-
उपवस्त्रन्ते आचमनीय जल समर्पयामि (आचमन के लिये जल चढ़ाएं।)
यज्ञोपवीत-
ॐ नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्रक्षाय मीदुये। अथो में अरय सत्वानोऽह तेम्योऽकर नमः।। ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीनर्मदेश्वरसाम्ब सदाशिवाय नमः यज्ञोपवीत समर्पयामि, यज्ञोपवीतान्ते आचमनीय जलु समर्पयामि। (यज्ञोपवीत समर्पित करें, फिर आचमन के लिये जल चढ़ाएं।)
आचमन-
यज्ञोपवीतान्ते आचमनीय जलं समर्पयामि। (आचमन के लिये जल चढ़ाएं।)
चन्दन-
श्रीखण्ड चन्दनं दिव्य गन्धाढ्य सुमनोहरम्। विलेपन सुरश्रेष्ठ चन्दन प्रतिकृह्यताम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। चन्दनानुलेपन समर्पयामि। (मलय चन्दन लगाएं।)
सुगन्धित द्रव्य-
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिय बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। ॐ मूमुर्वः स्वः श्रीनर्मदेश्वरताम्बसदाशिवाय नमः, सुगन्धिद्रव्य समर्पयामि। (सुगन्धित द्रव्य चढ़ाएं।)
अक्षत-
अक्षाताश्च सुरश्रेष्ट कुमकुमाक्ताः सुशोभिताः। मया निवेदिता भक्या गृहाण परमेश्वर।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। अक्षतान् समर्पयामि। (कुमकुमयुक्त अक्षत चढ़ाएं।)
पुष्पमाला-
माल्यादीनि सुगन्धिनि मालत्यादीनि भक्तितः। मयाऽऽवतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। पुष्पामाला समर्पयामि। (फूल एवं फूलमाला चढ़ाएं।)
विल्वपत्र-
ॐ नमो बिल्मिने च कवचिने च नमो वर्मिणे च वरूथिने च नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुभ्याय चाहनन्याय च।। त्रिगुण त्रिणुणाकारं त्रिनेत्र च त्रिधयुतम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्र शिवार्पणम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। बिल्वपत्रं समर्पयामि। (बिल्वपत्र चढ़ाएं।)
दूर्वा-
दूर्वाकुरान् सुहरितानमृतान् मंगलप्रदान। आनीतास्तव पूजार्थ गृहाण परमेश्वर।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। दुर्वांकुरान् समर्पयामि। (दूर्वाकुर चढ़ाएं।)
शमीपत्र
अमंगलाना शमनी शमनी दुष्कृतस्य च। दुःस्वप्ननाशिनी धन्यामर्पयेऽह शमी शुभाम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। शमीपत्राणि समर्पयामि। (शमीपत्र चढ़ाएं।)
आभूषण
बज्रमाणिक्यवैदूर्यमुक्ताविदु ममण्डितम्। पुष्परागसमायुक्तं भूषण प्रतिगृह्यताम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। रत्नामुषणं समर्पयामि। (रत्नाभूषण समर्पित करें।)
परिमलद्रव्य
दिव्यगन्धसमायुक्तं नानापरिमलान्वितम्। गन्धद्रव्यमिदं मक्त्या दत्त स्वीकुरू शोभनम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। परिमलद्रव्याणि समर्पयामि। (परिमल द्रव्य चढ़ाएं।)
धूप
वनस्पतिरसोभ्दूतो गन्धढ्यो गन्ध उत्तमः। आधेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। धूपमाधापयामि। (धूप दिखाएं।)
दीप
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिनना, योजित मया। दीपं गृहाण देवेश! त्रैलोक्यतिमिरापहम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। दीपं दर्शयामि। (घृतदीप दिखाएं, हाथ धो लें।)
नैवेद्य
शर्कराखण्डखाद्यानि दधियाक्षीरघृतानि च। आहारं मक्ष्यमोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। नैवेद्यं निवेदयामि। (नैवेद्य निवेदित करें।)
आचमनीय
नैवेद्यान्ते ध्यानम् आचमनीय जलं उत्तरापोऽशनं हस्तप्रक्षालनार्थ मुखप्रक्षालनार्थ च जलं समर्पयामि। (जल चढ़ाएं।)
करोद्वर्तन
ॐ सिञ्चति परि षिञ्चन्त्युत्सिञ्चन्ति पुनन्ति च। सुरार्य बच्चै मदे किन्चो वदति किन्त्चः। ॐ भूमुर्वः स्वः श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नमः, करोद्वर्तनार्थे चन्दनानुलेपनं समर्पयामि। (चन्दन का अनुलेपन करें।)
ऋतुफल
इदं फलं देव स्थापितं पुरतस्तव। तेन मे सप्फलावाप्तिर्मवेज्जन्मनि जनमनि।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। ऋतुफलं निवेदयामि। मध्ये आचमनीयं जलम् उत्तरापोऽशनं च समर्पयार्मि। (ऋतुफल चढ़ाएं और आचमन तथा उत्तरापोऽशन के लिये जल दें।)
ताम्बूल
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीवलैर्युतम्। एलालयंगसंयुक्त वामाल प्रतिगृह्यताम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। ताम्बूलं समर्पयामि। (इलायची, लौंग, सुपारी के साथ पान समर्पित करें।)
दक्षिणा
हिरण्यगर्भगर्मरथ हेमवीज विभावसोः। अनन्तपुण्यफलदमतः शान्ति प्रयच्छ मे।। श्री भगवते साम्यशिवाय नमः। दक्षिणां समर्पयामि। (दक्षिणा चढ़ाएं।)
आरती
कदलीगर्भरम्भूत कर्पूरं तु प्रदीपितम्। आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वस्दो भव।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। आरार्तिक्यं समर्पयामि। (कर्पूर से आरती करें और आरती के बाद जल गिराएं।)
प्रदक्षिणा
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणापदे पदे।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। प्रदक्षिणां समर्पयामि। (प्रदक्षिणा करें।)
मंत्रपुष्पाञ्जलि
श्रद्धया सिक्तया भक्त्या हार्दप्रेम्णा समर्पितः। मंत्रपुष्पाञ्जलिश्चाय कृपया प्रतिगृह्यताम्।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। मंत्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। (पुष्पाञ्जलि समर्पण करें।)
नमस्कार
नमः सर्वहितार्थाय जगदाध्रहेतवे। साष्टांगोऽयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृतः।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। नमस्कारान् समर्पयामि। (नमस्कार करें।)
क्षमा-याचना
मन्त्रहीन क्रियाहीनं मक्तिहीनं सुरेश्वर। यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। क्षमायाचनां समर्पयामि। (क्षमा-याचना करें।) अंत में चरणोदक और प्रसाद ग्रहण कर पूजा की सांगता करें।
अर्पण - ॐ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु। विष्णवे नमः, विष्णवे नमः, विष्णवे नमः।।
शिव की आरती-
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव…
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव…
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव…
अक्ष माला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसाारी कर माला धारी॥ ॐ जय शिव…
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव…
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धरते।
जगकर्ता जगहर्ता जगपालन करते॥ ॐ जय शिव…
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव…
काशी में विश्वनाथ विराजे नागों की माला।
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे॥ ॐ जय शिव…
इस आरती को गाते समय श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान शिव की पूजा करें और अंत में आरती उतारें।
शिव का रुद्राभिषेक कब करे-
शिव का रुद्राभिषेक विशेष रूप से सोमवार के दिन करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह दिन भगवान शिव को समर्पित है। इसके अलावा, रुद्राभिषेक शिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि, सावन के महीने, प्रदोष व्रत, और महाशिवरात्रि के अवसर पर भी करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।
रुद्राभिषेक करने का शुभ समय प्रातःकाल और सायंकाल का समय होता है, जब वातावरण शांत और पवित्र होता है। लेकिन विशेष अवसरों पर और आवश्यकतानुसार अन्य समयों पर भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
सोमवार: हर सोमवार भगवान शिव का प्रिय दिन है।
मासिक शिवरात्रि: हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है।
महाशिवरात्रि: फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है।
प्रदोष व्रत: हर माह की त्रयोदशी तिथि को, जो शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों में आती है।
सावन का महीना: श्रावण (सावन) मास भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है और इस पूरे महीने में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है।
रुद्राभिषेक करते समय श्रद्धा, भक्ति और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए और विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
मानसिक शांति: रुद्राभिषेक से मन को शांति और संतुलन मिलता है। यह मानसिक तनाव, चिंता और तनाव को कम करने में सहायक होता है।
आध्यात्मिक उन्नति: इस पूजा से आत्मा की शुद्धि होती है और व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह आत्मा की समस्याओं और कष्टों को दूर करने में मदद करता है।
स्वास्थ्य लाभ: रुद्राभिषेक से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह शरीर की रोग प्रतिकारक क्षमता को बढ़ाता है और विभिन्न बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
धन और समृद्धि: यह पूजा आर्थिक समृद्धि और धन लाभ के लिए भी शुभ मानी जाती है। यह आर्थिक संकटों और कर्ज से मुक्ति दिलाने में सहायक हो सकता है।
पारिवारिक सुख: रुद्राभिषेक से पारिवारिक सुख और सामंजस्य बढ़ता है। यह परिवार में शांति और प्रेम बनाए रखने में सहायक होता है।
पापों से मुक्ति: यह पूजा पापों की समाप्ति और पुण्य की प्राप्ति के लिए प्रभावी मानी जाती है। यह जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है।
समाधान और सुरक्षा: यह पूजा व्यक्ति को जीवन की समस्याओं के समाधान और सुरक्षा प्रदान करती है। यह व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और शक्ति देती है।
इस प्रकार और तन मन धन से शिव पूजा करे। इसमें कम से कम एक डेढ़ घंटे का समय लग सकता है इसलिए समय का ध्यान रखते हुए सुबह जल्दी उठें स्नान आदि करने के बाद सावन का महीना चल रहा है। रुद्रअभीषेक करने से आपको शांति व समृद्धि मिलती है । अगर आप इस विधि को कुछ नहीं कर सकते तो किसी योग्य ब्राह्मण से आप करवा सकते हैं ।
Disclaimer-इसमें हमारा ख़ुद का कोई योगदान नहीं है ये सभी विधिविधान धर्म शास्त्रों के अनुसार लिखी गई है
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