बर्बरीक से खाटू श्याम: महाभारत के महान योद्धा की अद्भुत कथा
महाभारत की कथा में कई वीर योद्धाओं का उल्लेख मिलता है, लेकिन कुछ पात्र ऐसे हैं, जिनकी कहानी कम चर्चित होने के बावजूद बेहद रोचक और रहस्यमय है। इन्हीं में से एक हैं बर्बरीक, जिनकी शक्ति और वीरता इतनी अद्वितीय थी कि यदि वे युद्ध में शामिल होते, तो महाभारत मात्र कुछ घंटों में समाप्त हो जाता। किंतु भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें केवल युद्ध का दर्शक बनाकर उनकी भूमिका को नया आयाम दिया। यही बर्बरीक आगे चलकर कलियुग में खाटू श्याम के रूप में पूजे गए। आइए, जानते हैं उनकी पूरी कथा।
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बर्बरीक महाबली भीम के पुत्र घटोत्कच और उनकी पत्नी मोरवी के पुत्र थे, अर्थात वे भीम और हिडिंबा के पौत्र थे। स्कंद पुराण के अनुसार, बर्बरीक का जन्म होते ही वे युवा अवस्था को प्राप्त हो गए। घटोत्कच ने उनके घुंघराले केश देखकर उन्हें 'बर्बरीक' नाम दिया। हालांकि, महाभारत के युद्ध में उनकी उपस्थिति नहीं दिखती, लेकिन कहा जाता है कि यदि वे युद्ध में भाग लेते, तो अर्जुन, भीष्म और कर्ण से भी अधिक शक्तिशाली योद्धा साबित होते।
बर्बरीक को मिली अद्भुत शक्तियां
बर्बरीक के पिता घटोत्कच उन्हें भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका ले गए। वहां बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से पूछा कि संसार में जीव का कल्याण किस साधन से संभव है? इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें बल प्राप्ति के लिए देवी साधना करने का सुझाव दिया। इसके बाद बर्बरीक ने महीसागरसंगम तीर्थ में तीन वर्षों तक नौ दुर्गाओं की कठोर उपासना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी दुर्गा ने उन्हें तीन अमोघ बाण प्रदान किए, जिनकी शक्ति अपार थी।
बर्बरीक की इन शक्तियों के कारण उन्हें 'तीन बाणधारी' भी कहा गया। कहा जाता है कि वे केवल तीन बाणों से महाभारत के समस्त योद्धाओं का संहार करने में सक्षम थे। परंतु उनकी माता मोरवी ने उन्हें यह सिखाया था कि वे हमेशा पराजित पक्ष का साथ देंगे। इस सिद्धांत के साथ वे महाभारत युद्ध में भाग लेने के लिए निकले, लेकिन तभी भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी परीक्षा ली।
भगवान श्रीकृष्ण ने मांगा बर्बरीक का शीश
जब बर्बरीक कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर बढ़ रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने एक ब्राह्मण के वेश में उनकी परीक्षा ली। वे जानते थे कि यदि बर्बरीक युद्ध में शामिल हुए, तो उनका पक्ष बदलता रहेगा और अंततः युद्ध का परिणाम पूरी तरह बदल सकता है। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वे किस ओर से युद्ध करेंगे। बर्बरीक ने अपनी प्रतिज्ञा को दोहराते हुए कहा कि वे हमेशा पराजित पक्ष की ओर से लड़ेंगे।
इससे यह स्पष्ट हो गया कि युद्ध के अंत में कौरवों की हार निश्चित थी, लेकिन बर्बरीक यदि युद्ध में उतरते, तो वे कौरवों का साथ देते और परिणाम बदल सकता था। श्रीकृष्ण को यह स्थिति स्वीकार्य नहीं थी। अतः उन्होंने बर्बरीक से दान में उनका शीश मांग लिया। बर्बरीक क्षणभर के लिए सोच में पड़ गए, लेकिन अपनी दानवीरता के कारण उन्होंने तुरंत अपना शीश समर्पित करने का निश्चय कर लिया।
शीश देने से पहले उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से यह वरदान मांगा कि वे महाभारत का पूरा युद्ध देख सकें। श्रीकृष्ण ने उनकी यह इच्छा पूरी की और उनके शीश को एक पहाड़ी पर स्थापित कर दिया। इस प्रकार, संजय के अलावा बर्बरीक एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने महाभारत युद्ध को प्रत्यक्ष रूप से देखा।
बर्बरीक से खाटू श्याम बनने की कथा
बर्बरीक की महान दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि वे कलियुग में उनके ही रूप में पूजे जाएंगे। वे 'श्याम' नाम से प्रसिद्ध होंगे और खाटू ग्राम में प्रकट होंगे।
युद्ध समाप्ति के बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के शीश को गर्भवती नदी में प्रवाहित कर दिया। कालांतर में यह शीश खाटू (जिसे उस समय खाटूवांग नगरी कहा जाता था) में आकर स्थिर हुआ। कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी के दिन बर्बरीक के शीश को नदी से निकालकर खाटू गांव में प्रतिष्ठित किया गया। तभी से वे 'बाबा खाटू श्याम' के रूप में पूजे जाने लगे।
बाबा खाटू श्याम: 'हारे का सहारा'
खाटू श्याम को 'हारे का सहारा' कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो कोई सच्चे मन से उनकी भक्ति करता है, उनकी कृपा से उसका जीवन संवर जाता है। खाटू श्याम मंदिर में प्रतिवर्ष लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार, बर्बरीक जो महाभारत में अपने अद्वितीय बल और शक्ति के कारण युद्ध के निर्णायक योद्धा बन सकते थे, वे श्रीकृष्ण की लीला के कारण कलियुग में भगवान श्याम के रूप में पूजनीय बन गए। उनकी कथा आज भी भक्ति, त्याग और दानवीरता की अद्भुत मिसाल बनी हुई है।
निष्कर्ष:
बर्बरीक की कथा महाभारत के एक ऐसे वीर योद्धा की कहानी है, जिसकी शक्ति अद्वितीय थी, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की लीला ने उसे केवल एक दर्शक बना दिया। तीन दिव्य बाणों के स्वामी बर्बरीक यदि युद्ध में शामिल होते, तो महाभारत का परिणाम पूरी तरह बदल सकता था। उनकी दानवीरता और भक्ति के कारण श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि वे कलियुग में "खाटू श्याम" के रूप में पूजे जाएंगे।
आज बाबा खाटू श्याम को 'हारे का सहारा' माना जाता है, और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए लाखों भक्त उनके दरबार में श्रद्धा के साथ आते हैं। उनकी कथा त्याग, दान और भक्ति की एक अनोखी मिसाल है, जो यह दर्शाती है कि सच्चे समर्पण और निःस्वार्थ प्रेम से मनुष्य ईश्वर के समकक्ष पूजनीय बन सकता है।
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