हम सब ऋषि वाल्मीकि के बारे में यह जानते हैं कि वह रामायण के रचयिता है, पर बहुत कम लोग जानते हैं कि वह बाल्मिकी ऋषि बनने से पहले एक डाकू थे।
आइए जानते हैं किस प्रकार एक डाकू ऋषि बना जिससे पढ़कर आपको और आपके बच्चों को गलत काम छोड़कर कुछ बनने के लिए प्रेरणा मिलेगी।
यह कहानी अपने बचचो को जरुर सुनाये।
Read more- सफलता का एक ही मन्त्र है जो भी काम करो नियम से करो
आइए जानते हैं किस प्रकार एक डाकू ऋषि बना जिससे पढ़कर आपको और आपके बच्चों को गलत काम छोड़कर कुछ बनने के लिए प्रेरणा मिलेगी।
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रत्नाकर नाम का एक डाकू हुआ करता था। रत्नाकर अपने साथियों के साथ बीहड़ जंगल में रहता था और वहां से गुजरने वाला यात्रियों को लूटपाट किया करता था। दूर दूर के इलाकों में रत्नाकर के नाम का शोर था।
एक बार की बात है, दिन छिप चुका था और थोड़ा अँधेरा हो रहा था, उस समय नारद मुनि उस जंगल में विचरण कर रहे थे कि तभी डाकू रत्नाकर ने अपने साथियों के साथ नारद जी को घेर लिया। नारद मुनि अपने आप में मग्न थे उनके मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं था।
रत्नाकर ने नारद जी से पूछा – सुनो ब्राह्मण, मैं रत्नाकर डाकू हूँ। क्या तुमको मुझसे डर नहीं लगता ।
नारद मुनि ने कहा – रत्नाकर मुझे किसी भी बात का भय नहीं है। मैं ना तो किसी असफलता से डरता हूँ और नाही मुझे अपने प्राणों का भय है, ना कल का और ना कलंक का…..लेकिन शायद तुम डरे हुए हो….
रत्नाकर ने गुस्से में कहा – मैं डरा हुआ नहीं हूँ, मुझे भला किसका डर हो सकता अगर डरना है तो तुम डरो
।
नारद मुनि कहा – अगर डरे नहीं हो तो इन जंगलों में छिप कर क्यों बैठे हो ? शायद तुम राजा से डरते हो या फिर अपने इलाका की जनता से
रत्नाकर – नहीं मैं किसी से भी नहीं डरता।
नारद मुनि ने मुस्कुरा के कहा – तुम पाप करते हो और तुम पाप से ही डरते हो इसलिए तुम यहाँ छिप कर बैठे हो लेकिन शायद तुमको नहीं पता कि इस पाप के केवल तुम ही भागीदार हो। इसका दण्ड तुमको अकेले भुगतना होगा कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा।
रत्नाकर ने गुस्से में कहा तुम मुझे उकसा रहे हो। मैं ये सब काम अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए करता हूँ और मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरे पिता सभी इस काम में मेरे साथ हैं।
नारद मुनि ने कहा – सुनो रत्नाकर, मुझे अपने प्राणों का भय नहीं है, तुम मुझे यहाँ पेड़ से बांध कर अपने घर जाओ और अपने सभी सगे सम्बन्धियों से पूछो कि क्या वह इस पाप में तुम्हारे साथ हैं।
रत्नाकर को नारद मुनि की बात सही लगी और वह उनको पेड़ से बाँधकर अपने घर की ओर चल दिया। घर जाकर उसने सबसे पहले अपनी पत्नी से पूछा कि मैं जो ये पाप करता हूँ क्या तुम उस पाप में मेरे साथ हो ।
रत्नाकर की पत्नी ने उत्तर दिया कि स्वामी आप इस परिवार के पालक हैं ये तो आपका कर्तव्य है इस पाप में मेरा कोई हिस्सा नहीं है।
रत्नाकर बेचारा उदास सा होकर अपने पिता के पास पहुँचा और उनसे भी यही सवाल पूछा तो पिता ने कहा – बेटा ये तो तेरी पाप की कमाई है, इस पाप में हमारा कोई हिस्सा नहीं है।
डाकू रत्नाकर के प्राण सूख गए उसे ये सब सुनकर बहुत बड़ा धक्का लगा कि वह जिनके लिए ये पाप कर रहा है वो उसके पाप में भागीदार होने को तैयार नहीं हैं। रत्नाकर हताश होकर वापस नारद मुनि के पास गया और नारद मुनि के पाँव में गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा।
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नारद मुनि ने उसे उठाया और सत्य का ज्ञान दिया। नारद मुनि ने कहा – सुनो रत्नाकर, इस धरती पर तुम जो भी कार्य करते हो, चाहे गलत या सही, सबका पाप और पुण्य तुमको ही मिलेगा। अपने सभी गलत कामो के लिए तुम ही जिम्मेदार हो। तुमने पुराने जीवन में जो कुछ पाप किये उसके जिम्मेदार भी तुम हो और आगे आने वाले जीवन में जो भी करोगे उसके भी जिम्मेदार अकेले तुम ही होंगे।
नारद मुनि ने रत्नाकर को सत्य से परिचित कराया और उन्हें “राम” का नाम जपने का उपदेश भी दिया। रत्नाकर से “राम” नाम तो सही से लिया ही नहीं जाता था और वो पहले राम का उलटा “मरा मरा” का उच्चारण करने लगा। “मरा मरा” जपते जपते पता नहीं कब राम राम जप लिया । और फिर यही रत्नाकर राम नाम का जाप करने लगा और आगे जाकर यही रत्नाकर डाकू महर्षि “वाल्मीकि” के नाम ये प्रसिद्ध हुआ।
महर्षि वाल्मीकि आदिकाल के सबसे उच्च ऋषि हैं। वह संस्कृत के विद्वान कवि और दुनिया के सबसे बड़े ग्रन्थ “रामायण” के रचयिता हैं। महर्षि वाल्मीकि ने ही हिंदुओं के सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ “रामायण” को संस्कृत में लिखा।
सच ही कहा गया है “राम” नाम के इस शब्द में बहुत ताकत है जिसने डाकू को भी एक ऋषि के रूप में परिवर्तित कर दिया।
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इस तरह की कहानियां अपने बच्चों को जरूर पढाये ताकि आपके बच्चे किसी गलत मार्ग पर ना जाए। और अगर गलती से चले भी गये हो तो सुधार करने का मोका अवश्य दे। अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो तो प्लीज comment जरूर करें।
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