Tittle- हस्त मुद्रा चिकित्सा पद्धति के सवास्थय लाभ-
इंसान का शरीर खुद ही अपनी बीमारियों को ठीक कर सकता हैं। हमारे शरीर के अंदर कुछ ऐसे रहस्य हैं , जिनको अपनाकर हम अपनी बीमारियों का इलाज खुद कर सकते है।
इन्हीं में से एक विज्ञान है, हस्त मुद्रा चिकित्सा। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
हमारे ऋषि मुनि पुराने समय में इन बातों को बहुत ही अच्छे से जानते थे, इसलिए वह बिना सुख सुविधाओं के होते हुए भी अपनी बीमारियों को खुद ही जंगलों में रहते हुए भी ठीक कर लेते थे। उनको डॉक्टरों की बहुत ही कम जरूरत पड़ती थी। अगर पडती भी थी तो वह इलाज भी जड़ी बूटियों द्वारा ही करते थे। उस समय एलोपैथी कहीं भी दूर दूर तक नहीं थी। आज इस भागदौड़ भरी दुनिया में लोग बहुत ही कम जानते हैं कि कुछ ऐसी मुद्राएं भी हैं, जिनको अपनाकर हम अपनी बीमारियों को खुद ही ठीक कर सकते हैं।
पुराने समय में अगर कहीं किसी को जंगल में कोई जहरीला कीड़ा भी काट जाता था तो वह अपनी मुंह की लार या जंगल से कोई जड़ी बूटी लगाकर उसको ठीक कर लेते थे।
पुराने समय में अगर कहीं किसी को जंगल में कोई जहरीला कीड़ा भी काट जाता था तो वह अपनी मुंह की लार या जंगल से कोई जड़ी बूटी लगाकर उसको ठीक कर लेते थे।
शरीर के पाँच तत्व का महत्व-
हमारा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। जब शरीर के इन पांच तत्वों में असंतुलन आ जाता है तो हमें बीमारियां घेर लेती हैं। इन पांच तत्वों का संतुलन बनाए रखने के लिए योग और आसन और कुछ मुद्राऔ का सहारा लिया जाता है। जिनमें से एक है हस्त मुद्रा चिकित्सा।
इन मुद्राऔ के अनुसार हाथों की उंगलियों से बनने वाली मुद्राओं से कई बीमारियों को दूर किया जा सकता है। इन मुद्राओं के करने से कई तरह की बीमारियों को ठीक करने का राज छिपा हुआ है।
हस्त मुद्राओं के लाभ-
शरीर के द्वारा कई तरह की मुद्राएं बनाई जाती हैं। जिसकी वजह से शरीर की हजारों नसों और नाडियों पर बहुत अच्छा असर पड़ता है। इन मुद्राओं के करने से तुरंत ही असर होना शुरू हो जाता हैं। जिस हाथ से मुद्रा बनाई जाती हैं शरीर के दूसरे विपरीत भाग में उनका तुरंत असर होना शुरू हो जाता है। इन सभी मुद्राओं को करने के लिए वज्रासन, पद्मासन या सुखासन में ही बैठकर करनी चाहिए।
मुद्राओं को करने के लिए समय-
यह जानना भी बहुत जरूरी है कि इन मुद्राओं को करने के लिए कितना समय लगाना चाहिए।
इन सभी मुद्राओं को करने के लिए प्रतिदिन 30 से 45 मिनट तक करने से पूरी तरह लाभ मिलता है। अगर एक बार में ना कर सको तो दिन में दो-तीन बार भी किया जा सकता है। किसी भी मुद्रा को करते समय बाक़ी उंगलियों को काम है उन्हें सीधा रखा जाता है ।
आइए जानते हैं अब विस्तार से कि कौन सी मुद्रा करने से कौन सी बीमारी ठीक होती है।
आइए जानते हैं अब विस्तार से कि कौन सी मुद्रा करने से कौन सी बीमारी ठीक होती है।
हस्त मुद्रा चिकित्सा कैसे करें
मनुष्य के दोनों हाथों में 5-5 अंगुलियां है । पहली उँगली का नाम अँगूठा
तत्व - अग्नि, रंग - लाल, गुण - ब्रह्म परमात्मा ।
2. अंगूठे के पास की अंगुली का नाम है तर्जनी तत्व - वायु , रंग - हरा , गुण - जीव।
3. तर्जनी के पास की अंगुली का नाम है मध्यमा तत्व - आकाश , रंग - रंग बिरंगा गुण तमोगुण।
मध्यमा के पास की अंगुली का नाम है अनामिका तत्व- पृथ्वी , रंग पीला , गुण - रजोगुण
5. आखिरी सबसे छोटी अंगुली जिसका नाम है कनिष्ठा , तत्व - जल , रंग सफेद गुण - स्वत्व ।
मनुष्य का शरीर इन्हीं पाच तत्वों से बना है । पाच अंगुलियों शरीर को स्वस्थ रखने में बीमारी को ठीक करने में पूरी सहायता करती है , उपरोक्त पांच तत्वों के विकृति , विषमता हो जाने के कारण ही बीमारिया पैदा होती है और इन पंच तत्वों में समता लाने पर बीमारी दूर हो जाती है ।
हाथों की इन दस अंगुलियों में विद्युत प्रवाह होता रहता है और अंगुलियों से इन पांचों तत्वों का विद्युत प्रवाह मुद्राओं द्वारा बढ़ाकर या घटाकर बड़े - बड़े असाध्य रोग या छोटे - मोटे रोगों को ठीक किया जा सकता है ।
अंगुलियों को एक - दूसरे से स्पर्श करते हुए किसी स्थिति विशेष में इनकी जो आकृति बनती है उसे मुद्रा कहते है ।
मनुष्य के दोनों हाथों में 5-5 अंगुलियां है । पहली उँगली का नाम अँगूठा
तत्व - अग्नि, रंग - लाल, गुण - ब्रह्म परमात्मा ।
2. अंगूठे के पास की अंगुली का नाम है तर्जनी तत्व - वायु , रंग - हरा , गुण - जीव।
3. तर्जनी के पास की अंगुली का नाम है मध्यमा तत्व - आकाश , रंग - रंग बिरंगा गुण तमोगुण।
मध्यमा के पास की अंगुली का नाम है अनामिका तत्व- पृथ्वी , रंग पीला , गुण - रजोगुण
5. आखिरी सबसे छोटी अंगुली जिसका नाम है कनिष्ठा , तत्व - जल , रंग सफेद गुण - स्वत्व ।
मनुष्य का शरीर इन्हीं पाच तत्वों से बना है । पाच अंगुलियों शरीर को स्वस्थ रखने में बीमारी को ठीक करने में पूरी सहायता करती है , उपरोक्त पांच तत्वों के विकृति , विषमता हो जाने के कारण ही बीमारिया पैदा होती है और इन पंच तत्वों में समता लाने पर बीमारी दूर हो जाती है ।
हाथों की इन दस अंगुलियों में विद्युत प्रवाह होता रहता है और अंगुलियों से इन पांचों तत्वों का विद्युत प्रवाह मुद्राओं द्वारा बढ़ाकर या घटाकर बड़े - बड़े असाध्य रोग या छोटे - मोटे रोगों को ठीक किया जा सकता है ।
अंगुलियों को एक - दूसरे से स्पर्श करते हुए किसी स्थिति विशेष में इनकी जो आकृति बनती है उसे मुद्रा कहते है ।
मुद्रा - चिकित्सा में हाथ की अंगुलियों को एक - दूसरे से स्पर्श करके भिन्न - भिन्न तरीकों से भिन्न - भिन्न रोगों की चिकित्सा होती है।
सनातन धर्म विश्व में सर्वोच्च सबसे ऊंचा है और सच्चा धर्म है सनातन धर्म ग्रन्थों में पूजा - संध्या में अंगुलियों की कई प्रकार की मुद्राओं का करना जरूरी होता है। जो मनुष्य के स्वास्थ्य से गहरा सम्बन्ध रखता है । मगर किसी को मालूम नहीं है कि ये मुद्रायें क्यों जरूरी है ?
बताने वाला गुरु का मिलना भी आसान नहीं है । सनातन धर्म को पूरी तरह पालन करने वाला कभी बीमार नहीं होगा । ऋषि - मुनियों ने हजारों साल पहले इसकी खोज कर ली थी एंव इसे उपयोग में बराबर प्रतिदिन लाते रहे । इसीलिये ये लोग स्वस्थ रहते थे ये शरीर में चैतन्य को अभिव्यक्ति देने वाली अनमोल उपहार है ।
मनुष्य का मस्तिष्क विकसित है , उसमें अनन्त क्षमताएं हैं।
ये क्षमताएं आवृत हैं , उन्हें अनावृत करके हम अपने लक्ष्य को पा सकते हैं । वैसे तो मुद्राएं बहुत हैं पर कुछ मुख्य मुद्राओं का वर्णन यहां किया जा रहा है ।
मनुष्य का मस्तिष्क विकसित है , उसमें अनन्त क्षमताएं हैं।
ये क्षमताएं आवृत हैं , उन्हें अनावृत करके हम अपने लक्ष्य को पा सकते हैं । वैसे तो मुद्राएं बहुत हैं पर कुछ मुख्य मुद्राओं का वर्णन यहां किया जा रहा है ।
ज्ञान- मुद्रा :-
ज्ञान - मुद्राः बड़े - बड़े ज्ञानी पुरुष जब जगत का बोध देते हैं , तब ज्ञानमुद्रा करते हैं , भगवान श्री शंकराचार्य ने ज्ञानमुद्रा का वर्णन दक्षिणमृतिस्तोत्र में किया है।
विधि - अंगूठे को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगा दे । शेष तीनों अंगुलियों चित्र के अनुसार सीधी रहेंगी । लाभ स्मरण शक्ति का विकास होता है और ज्ञान की वृद्धि होती है , पढ़ने में मन लगता है , मस्तिष्क के स्नायु मजबूत होते हैं , सिर दर्द दूर होता है तथा अनिद्रा का नाश , स्वभाव में परिवर्तन , अध्यात्म - शक्ति का विकास और क्रोध का नाश होता है ।
सावधानी - खान - पान सात्विक रखना चाहिये , पानपराग , सुपारी , जर्दा इत्यादि का सेवन न करें । अति उष्ण और अति शीतल पेय पदार्थों का सेवन न करें ।
वायु -मुद्रा:-
विधि- तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मुल में लगाकर हलका दबायें। शेष अंगुलियों को सीधी रखें ।
लाभ - वायु शान्त होती है । लकवा , साइटिका , गठिया , संधिवात , घुटने के दर्द ठीक होते है । लकवा , साइटिका , गठिया , संधिवात व घुटने के दर्द ठीक होता है। गर्दन के दर्द, रीढ़ का दर्द,व पारकिसन्स रोग फायदा होता है।
आकाश - मुद्रा:-
विधि - मध्यमा अगुली को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाये शेष तीनों अंगुलिया सीधी रहे।
लाभ - कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि , हड्डियों की कमजोरी तथा हृदयरोग ठीक होता है ।
सावधानी भोजन करते समय एवं चलते - फिरते यह मुद्रा न करें । हाथों को सीधा रखें लाभ हो जाने तक ही करें ।
शून्य -मुद्रा :-
विधि- मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाये एवं अगूठे से दबाये।
लाभ- कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि दूर होकर शब्द साफ सुनायी देता है ,मसूड़े की पकड़ मजबूत होती है तथा गले के रोग एवं थायरायड - रोग मे फायदा होता है ।
पृथ्वी -मुद्रा:-
विधि- अनामिका अंगुली को अंगूठे से लगाकर रखें।
लाभ- शरीर में सफुर्ती, कांति एव तेजस्विता आती है, दुर्बल व्यक्ति मोटा हो जाता है, वजन बढ़ता है, जीवन शक्ति का विकास होता है, यह मुद्रा पाचन क्रिया को भी ठीक करती हैं, सात्विक गुणों का विकास करती है, दिमाग में शांति लाती है तथा शरीर की विटामिन की कमी को पूरा करती है।
सूर्य -मुद्राः-
विधि- अनामिका अंगुली को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से दबाये ।
लाभ - शरीर संतुलित होता है वजन घटता है , मोटापा कम होता है । शरीर मे उष्णता की वृद्धि , तनाव में कमी , शक्ति का विकास , खून का कोलस्ट्रॉल कम होता है । यह मुद्रा मधुमेह , यकृत ( जिगर ) के दोषों को दूर करती है । सावधानी - दुर्बल व्यक्ति इसे न करे । गर्मी में ज्यादा समय तक न करे ।
वरुण मुद्रा कैसे करें :-
विधि - कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे से लगाकर मिलाये।
लाभ - यह मुद्रा शरीर में रूखापन नष्ट करके चिकनाई बढ़ाती है , चमड़ी चमकीली तथा मुलायम बनाती है । चर्म - रोग , रक्त - विकार एवं जल तत्व की कमी से उत्पन्न व्याधियों को दूर करती है । मुंहासों को नष्ट करती है, और चेहरे को सुन्दर बनाती है। सावधानी- कफ प्रकृतिवाले इस मुद्रा का प्रयोग अधिक न करें ।
अपान -मुद्रा :-
विधि - मध्यमा तथा अनामिका अंगुलियों को के अग्रभाग से लगा दे।
लाभ - शरीर और नाड़ी की शुद्धि से कब्ज व बवासीर दूर होता है ।
मल दोष नष्ट होते है। वायु विकार, , मधुमेह , मुत्ररावरोध, गुर्दो के दोष , दांतो के दोष दूर होते हैं और पेट के लिए बहुत उपयोगी है। हृदय रोग में फायदा होता है तथा यह शरीर का पसीना बाहर निकालता है ।
सावधानी- इस मुद्रा को करने से मूत्र अधिक मात्रा में आएगा।
योग निद्रा ( श्वासन ) कैसे करें-
साधारण मनुष्य रात्रि में सोता है, उसे प्रगाढ़ निद्रा न आकर स्वप्नवाली नींद आती है , जिससे मनुष्य शरीर में ताजगी व स्फूर्ति महसूस नहीं कर सकता है । उसका शरीर का थका थका रहता है । मानसिक रूप से अशांत एवं अस्थिर रहता है । योग निद्रा से शरीर को मानसिक एवं शारीरिक रूप से विराम मिल जाता है । विधि : - जमीन पर कम्बल या दरी बिछाकर पीठ के बल चित लेट जायें , प्रारम्भ से तनाव रहित होकर सिर पूर्व या दक्षिण या पश्चिम की तरफ रखें । उत्तर की तरफ सिर कभी भी न रखें ।
तीन बार गहरा श्वांस लेवे और छोड़े। सांस धरती मे भरे और छोड़ते समय पेट को एकदम अंदर चिपका ले । यह आसन 10 से 14 मिनट तक करना चाहिये । हाथों पैरो मे थोड़ा सा फासला रखे , आँखें बंद रखे, शरीर में किसी प्रकार का तनाव न रखें। हाथों का रुख आसमान की ओर रखे। गर्दन को दायी या बांयी ओर निढाल छोड़ दें सारा ध्यान साँसों पर लगाकर रखें । अपने मन को दाये पैर के अंगूठे तथा पास वाली अंगुली, दूसरी, तीसरी , चौथी अंगुली पर लगाकर देखें ।
धीरे - धीरे तलवा , टखना , पिण्डली , घुटना , नितम्ब के हिस्से को देखे तथा प्रत्येक जोड़ को ढीला व शांत छोड़ते चले जायें । इसी प्रकार बाये पैर अंगूठा , पास वाली अंगुली , दूसरी, तीसरी , चौथी अंगुली, तलवा , टखना , पिण्डली , घुटना , जंघा , नितम्ब पर सारा ध्यान लगाये और पूरे अवयव को निढाल छोड़ते चले जाये । इसी तरह दायें हाथ का अंगूठा , पास वाली अंगुली , दूसरी तीसरी , चौथी अंगुली का अग्रभाग - पश्चभाग , कलाई , कोहनी , बाहु , कंधे आदि को ढीला व शात छोड़ दें ।
बाये हाथ का अंगूठा पास वाली अंगुली, दूसरी, तीसरी, चीची अगुली अग्रभाग , कोहनी, बाजू कंधे आदि निढाल छोड़ दें।
धीरे से अपने मन को कमर के हिस्से पर ले जाये तथा तनावमुक्त छोड़े तथा धीरे से पीठ के हिस्से पर मन को ले जाये और मन को शांत रखे।
अब सारा ध्यान पेट पर ले जाये यकृत , आमाशय , बड़ी आँत व छोटी आँत शांत होती जा रही है। हृदय के चारों कपाट, हृदय के स्पन्दन को बड़े ध्यानपूर्वक सुने , फेफड़े के दांये एवं बांये भाग को ध्यान से देखें, ध्यान गर्दन पर ले जायें । गर्दन की पेशियों शांत हो रही है । चेहरे , गाल , कान , आँख , ललाट ,सिर को देखें और यह सोचे कि सब कुछ शांत हो रहा है। अब सारा शरीर हल्का , शांत , शिथिल , निढाल होता चला जा रहा है । यह रक्त मज्जा से बना हुआ पुतला जमीन पर पड़ा हुआ है । खूब गहरा श्वास लें सारी प्राण वायु से शरीर का रोआ -रोआ जाग्रत हो रहा है । खून शुद्ध होकर मनुष्य को पोषण दे रहा है । रक्त धमनियों में रक्त का परिभ्रमण होता चला जा रहा है । कल्पना करे प्रातः काल के समय में सूर्य की रोशनी बहते हुए झरने पर पड़ रही है । झरने में शांत रूप से पानी के बहने की आवाज सुन रही है, चिड़ियों की चहचहाने की मधुर आवाज सुनाई दे रही है । यह सुहावना मौसम सुन्दर हरियाली रमणीय लग रही है । अन्तः यात्रा की ओर अग्रसर होवें । खूब गहरा डुबे और भुल जायें। अपने शरीर के अस्तित्व को।
अब अपने आप को धीरे - धीरे वास्तविक स्थिति में लौटने के लिए जरा सा पैरो की अगुलियों को हिलायें , पैरों में चेतना का संचार हो रहा है , फिर हाथों की अंगुलियों को गर्दन को हिलायें , सारे शरीर मे चेतना का संचार हो रहा है । दोनों हाथों का आपस में घर्षण करे तथा पलकों पर रखें , फिर धीरे से आँखों को खोलें तथा बांयी करवट लेकर उठे।
योग निद्रा के लाभ -
योग निद्रा से मानसिक तनाव कम होता है । उच्च रक्तचाप , हृदय रोग , अनिद्रा , मन शांत एवं स्थिर हो जाता है । स्मरण शक्ति का विकास होता है ।
Last alfaaz:-
इस प्रकार आप इन मुद्राओं को करके अपने आप को खुद ठीक कर सकते हो, मानसिक तनाव जैसी भयंकर बीमारी के लिए तो इस प्रकार की मुद्राएं योग और आसन सबसे ज्यादा उपयोगी हैं। इसलिए अपने जीवन में इन मुद्राओं को अपनाए और खुद को स्वस्थ रखें क्योंकि हमारा स्वास्थ्य ही सबसे कीमती धन है।
तीन बार गहरा श्वांस लेवे और छोड़े। सांस धरती मे भरे और छोड़ते समय पेट को एकदम अंदर चिपका ले । यह आसन 10 से 14 मिनट तक करना चाहिये । हाथों पैरो मे थोड़ा सा फासला रखे , आँखें बंद रखे, शरीर में किसी प्रकार का तनाव न रखें। हाथों का रुख आसमान की ओर रखे। गर्दन को दायी या बांयी ओर निढाल छोड़ दें सारा ध्यान साँसों पर लगाकर रखें । अपने मन को दाये पैर के अंगूठे तथा पास वाली अंगुली, दूसरी, तीसरी , चौथी अंगुली पर लगाकर देखें ।
धीरे - धीरे तलवा , टखना , पिण्डली , घुटना , नितम्ब के हिस्से को देखे तथा प्रत्येक जोड़ को ढीला व शांत छोड़ते चले जायें । इसी प्रकार बाये पैर अंगूठा , पास वाली अंगुली , दूसरी, तीसरी , चौथी अंगुली, तलवा , टखना , पिण्डली , घुटना , जंघा , नितम्ब पर सारा ध्यान लगाये और पूरे अवयव को निढाल छोड़ते चले जाये । इसी तरह दायें हाथ का अंगूठा , पास वाली अंगुली , दूसरी तीसरी , चौथी अंगुली का अग्रभाग - पश्चभाग , कलाई , कोहनी , बाहु , कंधे आदि को ढीला व शात छोड़ दें ।
बाये हाथ का अंगूठा पास वाली अंगुली, दूसरी, तीसरी, चीची अगुली अग्रभाग , कोहनी, बाजू कंधे आदि निढाल छोड़ दें।
धीरे से अपने मन को कमर के हिस्से पर ले जाये तथा तनावमुक्त छोड़े तथा धीरे से पीठ के हिस्से पर मन को ले जाये और मन को शांत रखे।
अब सारा ध्यान पेट पर ले जाये यकृत , आमाशय , बड़ी आँत व छोटी आँत शांत होती जा रही है। हृदय के चारों कपाट, हृदय के स्पन्दन को बड़े ध्यानपूर्वक सुने , फेफड़े के दांये एवं बांये भाग को ध्यान से देखें, ध्यान गर्दन पर ले जायें । गर्दन की पेशियों शांत हो रही है । चेहरे , गाल , कान , आँख , ललाट ,सिर को देखें और यह सोचे कि सब कुछ शांत हो रहा है। अब सारा शरीर हल्का , शांत , शिथिल , निढाल होता चला जा रहा है । यह रक्त मज्जा से बना हुआ पुतला जमीन पर पड़ा हुआ है । खूब गहरा श्वास लें सारी प्राण वायु से शरीर का रोआ -रोआ जाग्रत हो रहा है । खून शुद्ध होकर मनुष्य को पोषण दे रहा है । रक्त धमनियों में रक्त का परिभ्रमण होता चला जा रहा है । कल्पना करे प्रातः काल के समय में सूर्य की रोशनी बहते हुए झरने पर पड़ रही है । झरने में शांत रूप से पानी के बहने की आवाज सुन रही है, चिड़ियों की चहचहाने की मधुर आवाज सुनाई दे रही है । यह सुहावना मौसम सुन्दर हरियाली रमणीय लग रही है । अन्तः यात्रा की ओर अग्रसर होवें । खूब गहरा डुबे और भुल जायें। अपने शरीर के अस्तित्व को।
अब अपने आप को धीरे - धीरे वास्तविक स्थिति में लौटने के लिए जरा सा पैरो की अगुलियों को हिलायें , पैरों में चेतना का संचार हो रहा है , फिर हाथों की अंगुलियों को गर्दन को हिलायें , सारे शरीर मे चेतना का संचार हो रहा है । दोनों हाथों का आपस में घर्षण करे तथा पलकों पर रखें , फिर धीरे से आँखों को खोलें तथा बांयी करवट लेकर उठे।
योग निद्रा के लाभ -
योग निद्रा से मानसिक तनाव कम होता है । उच्च रक्तचाप , हृदय रोग , अनिद्रा , मन शांत एवं स्थिर हो जाता है । स्मरण शक्ति का विकास होता है ।
Last alfaaz:-
इस प्रकार आप इन मुद्राओं को करके अपने आप को खुद ठीक कर सकते हो, मानसिक तनाव जैसी भयंकर बीमारी के लिए तो इस प्रकार की मुद्राएं योग और आसन सबसे ज्यादा उपयोगी हैं। इसलिए अपने जीवन में इन मुद्राओं को अपनाए और खुद को स्वस्थ रखें क्योंकि हमारा स्वास्थ्य ही सबसे कीमती धन है।
Posted by-kiran
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