राम रक्षा स्तोत्र | मनोकामना पूर्ण करने के लिए राम रक्षा कवच का पाठ करें |

Tittle- श्री राम रक्षास्तोत्रम कवच का  महत्व और विधी विधान कब और कैसे करें-
हमारे हिंदू धर्म में देवी और देवताओं के पूजा के लिए कुछ खास विशेष दिन माने गए हैं, जिनमें से गुरुवार भगवान राम और विष्णु के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। लेकिन  बहुत कम लोग जानते  हैं ,इस दिन श्री हरी विष्णु के साथ-साथ इनके ही अन्य अवतार श्री राम की भी पूजा का विधान है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता कि अगर जातक गुरुवार को श्री राम की सच्चे मन से पूजा की जाए तो हर मनोकामना सिद्ध होती है।
अब बहुत से लोग ऐसे होंगे कि  पढ़ते ही फटाफट पूजा करने लग जाते है पर आपको बता दें की इस तरह की पुजा फलदायी नही होती।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूरे विधि-विधान के अनुसार ही पूजा करना चाहिए, तब ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है। 
अगर आप भी श्री राम को खुश करना चाहते हैं तो गुरुवार के दिन श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ ज़रूर करें। ऐसा करने से भगवान्  राम  आपकी हर विपदा से आपकी रक्षा करेंगे।

राम रक्षा स्तोत्र की उत्पत्ति कैसे हुई-

राम रक्षा स्तोत्र की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक मान्यता जुड़ी हुई है जिसके अनुसार ए‍क दिन भगवान शंकर ने बुधकौशिक ऋषि को स्वप्न में दर्शन देकर, उन्हें रामरक्षास्‍त्रोत सुनाया था। प्रातःकाल उठकर ऋषि ने पर इस स्‍त्रोत को लिख लिया। ये स्‍त्रोत संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषा में है और इसके पाठ को काफी प्रभावशील  माना जाता है।
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राम रक्षा स्त्रोत का महत्व- 

राम रक्षा स्त्रोत का पाठ जातक की सभी तरह की विपत्तियों से रक्षा करता है।

इसका पाठ करने से मनुष्य भय से मुक्त हो जाता है।

इसके नित्य पाठ करने से सभी तरह के  कष्ट दूर होते हैं।

जो इसका रोज़ाना पाठ करता है वह दीर्घायु, सुखी, संततिवान, विजयी और सभी तरह के सुख को भोगता है।

मंगल का कुप्रभाव समाप्त होता है।

इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति के चारों और सुरक्षा कवच बनता है, जिससे हर प्रकार की विपत्ति से भगवान् राम जातक की रक्षा करते है।

धर्म के अनुसार ऐसा माना  जाता है इसके पाठ से भगवान राम के साथ पवनपुत्र हनुमान भी प्रसन्न होते हैं।

रामरक्षाकवच ' की सिद्धि की विधि- ( हिन्दी अनुवाद ) 

 नवरात्र में प्रतिदिन नौ दिनों तक ब्रह्म मुहूर्त में नित्य - कर्म तथा स्नानादि से निवृत्ति हो शुद्ध वस्त्र धारण कर कुशा के आसन पर सुखासन लगार बैठ जाइए । भगवान श्री राम के कल्याणकारी स्वरूप में चित्त को एकाग्र करके इस महान फलदायी स्तोत्र को कम से कम 11 बार और यदि यह न कर सको तो 7 बार नियमित रूप से प्रतिदिन पाठ कीजिए। पाठ करने वाले की श्रीराम की शक्तियों के प्रति जितनी अखंड श्रद्धा होगी उतना ही अधिक फल प्राप्त होगा।  वैसे रामरक्षाकवच कुछ लंबा है, परंतु इसका संस्कृत में अनुवाद थोड़ा छोटा होता है।  यह भी आप कर सकते है। इस जप को पुर्ण शांति  और विश्वास के साथ करना चाहिए, यहां तक कि यह कण्ठस्थ हो जाए। 

विनियोग---
 इस रामरक्षास्तोत्र - मन्त्र के बुधकौशिक ऋषि है , सीता और रामचन्द्र  देवता हैं , अनुष्टुप छन्द है , सीता शक्ति है , श्रीमान् हुनमान जी कीजक है तथा श्रीरामचन्द्रजी की प्रसन्नता के लिये रामरक्षास्तोत्र के जल में विनियोग किया जाता है । 
अब जल लेकर  जमीन पर छोड़ दें और भगवान् राम का धयान करें। 

ध्यानम्- 
जो धनुष - बाण धारण किये हुए है , बद्ध पद्द्मासन से विराजमान है , पीताम्बर पहने हुए हैं , जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमलदल से स्पर्धा करते तथा वामभाग में विराजमान श्री सीताजी के मुखकमल से मिले हुए हैं , उन आजानुबाहु , मेघश्याम नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्री रामचन्द्रजी का ध्यान करे।
स्तोत्रम् ----
श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ करोड़ विस्तारवाला है और उसका एक - एक अक्षर भी मनुष्यों के महान् पापों को नष्ट करने वाला है । जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण , कमल नयन , जटाओं के मुकुट से सुशोभित , हाथों में खडग , तूणीर , धनुष और बाण धारण करने वाले राक्षसों के संहारकारी तथा संसार की रक्षा के लिए अपनी लीला से ही अवतीर्ण हुए हैं। उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान राम का जानकी और लक्ष्मण जी के सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरूष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षा का पाठ करें ।
 मेरे सिर की राघव और ललाट की दशरथात्मज रक्षा करें।। कौसल्यानन्दन नेत्रों की रक्षा करें , विश्वामित्रप्रिय कानों को सुरक्षित रखें तथा यज्ञरक्षक घाण की और सौमित्रिवत्सल मुख की रक्षा करें।  मेरी जिह्वा की विद्यानिधि , कण्ठ की भरतवन्दित , कन्धों की दिव्यायुध और भुजाओं की भग्नेशकार्मुक ( महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले ) रक्षा करें ||
  हाथों की सीतापति , हृदय की जामदग्न्यजित ( परशुरामजी को जीतने वाले ) , मध्य भाग की खरूध्वंसी ( खर नाम के राक्षस का नाश करने वाले ) ( जाम्बवान् के आश्रम स्वरूप ) रक्षा करें ।  कमर की सुग्रीवेश ( सुग्रीव के स्वामी ) , सक्थियों की हनुमत्प्रभु और ऊरूओं की रक्षासकुल - विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें ॥
 जानुओं की सेतुकृत् . जगाहों की दखमुखान्तक ( रावण को मारने वाले ) , चरणों की ( विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले ) और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें । जो पुण्यवान् पुरुष रामबल से सम्पन्न इस रक्षा का पाठ करता है , वह दीर्घायु , सुखी , पुत्रवान , विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता है।। जो जीव पाताल , पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते हैं और जो छद्मवेश में घूमते रहते हैं , वे रामनामों से सुरक्षित पुरुष को देख भी नहीं सकते।। ' राम ' ,रामभद्र '  रामचन्द्र ' इन नामों का स्मरण करने से मनुष्य पापों से लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।। जो पुरुष जगत् को विजय करने वाले एकमात्र मन्त्र रामनाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कण्ठ में धारण करता है ( अर्थात् इसे कठस्थ कर लेता है ) , सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती है।। जो मनुष्य वज्रपज्जर नामक इस रामकवच का स्मरण करता है , उसकी आज्ञा का कहीं उल्लंघन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मंगल की प्राप्ति होती है।। श्री शंकर ने रात्रि के समय स्वप्न में इस रामरक्षा का जिस प्रकार आदेश दिया था , उसी प्रकार तकाल जागने पर बुधकौशिक ने इसे लिख दिया ।। जो मानो कल्पवृक्षों के बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियों का अन्त करने वाले हैं , जो तीनों लोकों में परम सुन्दर हैं वे श्रीमान , राम हमारे प्रभु हैं । जो तरूण अवस्था वाले , रूपवान , सुकुमार , महाबली , कमल के समान विशाल नेत्रों वाले चीरवस्त्र और कृष्णमृगचर्मधारी , फल - मूल आहार करने वाले , संयमी , तपस्यी , ब्रह्मचारी , सम्पूर्ण जीवों को शरण देने वाले धनुधारियों में श्रेष्ठ और राक्षस कुल का नाश करने वाले हैं , वे रघु श्रेष्ठ दशरथकुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें।। जिन्होंने संधान किया  हुआ धनुष ले रखा है, जो बाण का स्पर्श  कर रहे हैं  तथा अक्षय बाणों से युक्त  तूणीर लिये हुए हैं ये राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए । मार्ग में सदा ही मेरे आगे चले । सर्वदा उद्यत , कवचधारी , हाथ में खडग लिये धनुष - बाण धारण किये ताकि युवा अवस्थावाले भगवान् राम लक्ष्मणजी  सहित आगे - आगे चलकर हमारे मनोरथो की रक्षा करें।। भगवान् का कथन है कि राम , दशरथ , शूर , लक्ष्मणानुचर , बली , काकुत्स्थ , पुरुष , पूर्ण , कौस्लय रघुतम , वेदान्तवेद्य ,यज्ञेश पुराणपुरुषोत्तम , जानकी वल्लम् , श्रीमान और अप्रमेयपराक्रम - इन नाम को नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त करता है , इसमें कोई सन्देह नहीं 11 जो लोग दूर्वादल के समान श्यामवर्ण , कमलनयन पीताम्बरधारी भगवान राम का इन दिव्य नामों से स्तवन करते हैं , वे संसार चक्र में नहीं  पडते ।  लक्ष्मण के पूर्वज , रघुकुल में श्रेष्ठ , सीताजी के स्वामी, अतिसुन्दर ,  ककुत्स्थकुलनन्दन ,करुणासागर , गुणनिधान , ब्राह्मणभक्त , परमधार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ , दशरथपुत्र श्याम और शान्तमूर्ति , सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर कुल राघव और रावणारि भगवान् राम की में वन्दना करता हूँ ।। राम , रामभद्र , रामचन्द्र विधतृस्वरूप , रघुनाथ प्रभु सीतापति को नमस्कार है।। हे रघुनन्दन श्रीराम है भरताग्रज भगवान् राम ! हे रणधीर प्रभु राम। आप मेेरे आश्रय होईये। ।
आप मेरे आश्रय होइये ।1
 में श्रीरामचन्द्रजी के चरणों का मन से स्मरा करता हूँ , श्रीरामचन्द्र के चरणों का वाणी से कीर्तन करता हूँ , श्रीरामचन्द्र के चरणों को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्रीरामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ ॥ राम मेरी माता हैं , राम मेरे पिता है , राम स्वामी है और राम ही मेरे सखा है । दयामय रामचन्द्र ही मेरे सर्वस्व हैं , उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जानता बिल्कुल नहीं जानता ॥ जिनकी दायीं ओर लक्ष्मण जी , बायीं ओर जानकीजी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं , उन रघुनाथ जी की में वन्दना करता हूँ ॥ जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर , रणक्रीडा में धीर , कमलनयन , रघुवंशनायक , करूणामूर्ति और करूणा के भण्डार है , उन श्रीरामचन्द्र जी की शरण लेता हूँ। जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है , जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानों श्रेष्ठ हैं , उन पवननन्दन वानराग्रगण्य श्रीरामदूत की में शरण लेता हूँ ॥ कवितामयी डाली पर बैठकर मधुर अक्षरों वाले राम - राम इस मधुर नाम को कूजते हुए बाल्मिकिरूप कोकिल की में वन्दना करता हूँ ॥ आपत्तियों को हरने वाले तथा सब प्रकार की सम्पत्ति प्रदान करने वाले लोकाभिराम भगवान राम को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।। राम - राम ' ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसार बीजों को भून डालने वाला , समस्त सुख - सम्पत्ति की प्राप्ति कराने वाला तथा यमदूतों को भयभीत करने वाला है ।।  राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजय को प्राप्त होते हैं । में लक्ष्मीपति भगवान् राम का भजन करता हूँ । जिन रामचन्द्रजी ने सम्पूर्ण राक्षस सेना का ध्वंस कर दिया था . मैं उनको प्रणाम करता हूँ । राम से बड़ा और कोई और आश्रय नहीं है । मैं उन रामचन्द्रजी का दास हूँ । मेरा चित सदा राम में ही लीन रहे , हे राम ! आप मेरा उद्धार कीजिये।। ( श्रीमहादेवजी पार्वती जी से कहते है- ) हे सुमुखि ! रामनाम विष्णुसहस्रनाम के तुल्य है । मैं सर्वदा राम , राम , राम , इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ ||
  इति- श्रीबुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्र सम्पूर्णम् ।

श्री राम रक्षा स्तोत्र का संस्कृत में अनुवाद-
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः।
अब जल लेकर  जमीन पर छोड़ दें और भगवान् राम का धयान करें।

अथ ध्यानम्‌:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌। वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम।

राम रक्षा स्तोत्र- 
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्। एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्।।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्। जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं।।

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्।।

रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्। शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः।।
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति। घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः।।

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः। स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः।।

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित। मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः।।
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः। उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः।।

जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः। पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः।।

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत। स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्।।
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः। न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः।।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन। नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति।।

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्। यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः।।
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत। अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम्।।

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः। तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः।।

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्। अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः।।
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ। पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ।।

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ।।
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्। रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ।।
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ। रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम।।
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा। गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः।।
रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली। काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः।।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः। जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः।।

इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः। अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः।।

रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम। स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः।।
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम।।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम।।

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम। श्रीराम राम रणकर्कश राम राम। श्रीराम राम शरणं भव राम राम।।
श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि। श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये।।

माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने।।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्।।
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये।।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम। आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम।।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्। तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्।।
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।।
Last alfaaz- 
इस प्रकार जातक अपनी श्रद्धा के अनुसार चाहे हिंदी या फिर संस्कृत में इसका पाठ कर सकते हैं। बस ध्यान रहे जप का समय एक ही रखें। जप का समय बार बार ना बदले यह अति उत्तम विधि मानी जाती है।
 राम रक्षा स्तोत्र के बारे में हमारे धर्म ग्रंथों में ऐसा बताया गया कि दुनिया में ऐसा कोई भी कार्य नहीं है तो राम रक्षा स्तोत्र द्वारा ना किया जा सकता है ,बस जरूरत है श्रद्धा और विश्वास की। अगर कोई भी पूजा पाठ है तो जातक की श्रद्धा और विश्वास का होना बहुत जरूरी है।
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Disclaimer--  यह सब धर्म के स्तोत्र हमारे धर्म ग्रंथों से लिए गए हैं।

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