भगवान् शिव कया है और क्यू सबसे जयादा पुजा जाता है -
हमारे हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा सबसे ज्यादा की जाती है। शायद ही कोई ऐसा मंदिर होगा जहां पर शिवलिंग की स्थापना ना हो । सभी मंदिरों में शिवलिंग को एक गोलाकार काले रंग के पत्थर में दर्शाया जाता है। आज मैं आपके साथ इस लेख के माध्यम से कोशिश करूंगी जितना हो सके आपको शिवलिंग के बारे में बताने की। आइए जानते हैं कुछ विशेष बातें की शिवलिंग और प्रकृति का क्या संबंध है।
* शिवलिंग का वास्तविक अर्थ कया है-
भगवान शिव के सच्चे स्वरूप को जानना सबके बस की बात नहीं है हम शिवलिंग की पूजा तो करते हैं लेकिन हममें से ज्यादातर यह नहीं जानते हैं कि शिवलिंग का वास्तविक अर्थ क्या है?
शिवलिंग क्यों पूजनीय है शिवलिंग का आकार ऐसा ही क्यों है। शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ क्या है और शिवलिंग से हमें क्या बहुत मिलता है।
आज के इस लेख में हम इन सभी रहस्यो से पर्दा उठाने वाले हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।
बहुत से लोगों ने शिवलिंग का गलत अर्थ बता कर लोगों को भ्रमित कर रखा है लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात तो यह है कि इस षड्यंत्र में कुछ विदेशी लोगों के साथ-साथ हमारे देश के लोग भी शामिल है। इन लोगों ने शिवलिंग का बहुत ही गंदा मतलब निकाल रखा है। जिनको मै अपने शब्दों में बयान नहीं कर सकती। घिन होती हैै ऐसे जो भगवान के भगवान के प्रति भी इस तरह के शब्दों का यूज कर सकते हैं , लेकिन सच्चाई ज्यादा देर तक छिपी नहीं रह सकती है।
शिवलिंग क्यों पूजनीय है शिवलिंग का आकार ऐसा ही क्यों है। शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ क्या है और शिवलिंग से हमें क्या बहुत मिलता है।
आज के इस लेख में हम इन सभी रहस्यो से पर्दा उठाने वाले हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।
बहुत से लोगों ने शिवलिंग का गलत अर्थ बता कर लोगों को भ्रमित कर रखा है लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात तो यह है कि इस षड्यंत्र में कुछ विदेशी लोगों के साथ-साथ हमारे देश के लोग भी शामिल है। इन लोगों ने शिवलिंग का बहुत ही गंदा मतलब निकाल रखा है। जिनको मै अपने शब्दों में बयान नहीं कर सकती। घिन होती हैै ऐसे जो भगवान के भगवान के प्रति भी इस तरह के शब्दों का यूज कर सकते हैं , लेकिन सच्चाई ज्यादा देर तक छिपी नहीं रह सकती है।
आज के बाद आपको शिवलिंग का वास्तविक अर्थ और रहस्य पता चल जाएगा और साथ में यह भी बताएंगे कि शिवलिंग भारत , चाइना, एलियंस और पूरे यूनिवर्स में क्यों पूजनीय है तो इस लेख को अंत तक ज़रूर पढना ।
*शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
शिवलिंग में शिव का अर्थ होता है परम शुद्ध चेतना, परमेश्वर या परम तत्व और लिंग का अर्थ होता है निशांन ,चिन्ह, प्ररूप , लक्षण और प्रतिक और अब हमें यह भी पता होना चाहिए कि संस्कृत में जनन अगं के लिए शिष्नम शब्द प्रयोग होता है।
शिवलिंग में शिव का अर्थ होता है परम शुद्ध चेतना, परमेश्वर या परम तत्व और लिंग का अर्थ होता है निशांन ,चिन्ह, प्ररूप , लक्षण और प्रतिक और अब हमें यह भी पता होना चाहिए कि संस्कृत में जनन अगं के लिए शिष्नम शब्द प्रयोग होता है।
लिंग शब्द का प्रयोग कभी भी नहीं होता है।
अब हम लिगं के कुछ अन्य अर्थ जानते हैं।
लियते यसमीन इति लिगंम ! लिगपुराण बताया गया है कि सारे संसार की उत्पत्ति और लय जिसमें हो उसे लिंग कहते हैं।
आइये अब जानते है शिवलिंग वास्तव में कया है।
*शिव और शक्ति का मेल की शिवलिंग है -
अब हम लिगं के कुछ अन्य अर्थ जानते हैं।
लियते यसमीन इति लिगंम ! लिगपुराण बताया गया है कि सारे संसार की उत्पत्ति और लय जिसमें हो उसे लिंग कहते हैं।
आइये अब जानते है शिवलिंग वास्तव में कया है।
*शिव और शक्ति का मेल की शिवलिंग है -
आइए अब हम जानते हैं कि शिवलिंग वास्तव में क्या है शिवलिंग को जानने के लिए हमें सबसे पहले शिव और शक्ति यानी कि पुरुष और प्रकृति को जानना बहुत जरूरी है। शिव आगमो में शिवलिंग को शिव और शक्ति कहा जाता है और वेदों में पुरुष और प्रकृति कहते हैं।
विज्ञान उसे गॉड एंड एनर्जी कहता है, हालांकि विज्ञान गॉड को नहीं मानता है। विज्ञान कहता है कि प्रकृति यानी कि सभी भौतिक पदार्थ मूल रूप से एनर्जी ही है। और विज्ञान ने हमें सूत्र दिया है इक्वल टू एमसी स्क्वायर विज्ञान का यह भी कहना है कि प्रकृति ऑटोमेटिक है।
यह दिन रात जन्म-मृत्यु सब प्रकृति ही करती है। ईश्वर का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है । जो कि हमारा वैदिक धर्म कहता है कि प्रकृति यदि ऑटोमेटिक है उसे ऑटोमेटिक बनाने वाला भी तो कोई है।
सृष्टि निर्माण के बारे में विज्ञान हमें भी बिग बैन की थयुरी देता है, लेकिन पहले क्या था उसके बारे में विज्ञान मौन हो जाता है। विज्ञान हमें यह भी नहीं बताता है कि बिना स्पेस के बिना आकाश के कोई चीज संभव ही नहीं हो सकती तो बिगबैन कहां हुआ था।
लेकिन हमारे वैदिक धर्म में बिग बैन से पहले क्या था उसकी भी बात की गई है। अब हम प्रकृति की बात करते हैं। प्रकृति का मतलब यह नहीं है कि जो हमें दिखाई देता है। प्रकृति का मतलब होता है कृति से पहले यानी कि बिफोर क्रिएशन, यानी कि सर्जन से पहले जो स्थिति थी वह कहलाती है प्रकृति। प्रकृति में सब कुछ पैदा करने की क्षमता थी। वह जो चाहे पैदा कर सकती थी। और इसीलिए प्रकृति को सर्वगर्भा कहा जाता है। जो भी संसार में पैदा होगा वह प्रकृति से पैदा होगा जो चीज जहां नहीं है वहां से पैदा नहीं हो सकती।
विज्ञान के मूल सिद्धांत को हमारे यहां हजारों साल पहले ही बता दिया गया था। आउट ऑफ नथिंग नथिंग इस प्रोड्यूस्ड फ्रॉम जीरो can be zero produce समथिंग can be समथिंग को प्रोड्यूस करती है मतलब कि समथिंग. यानी कि प्रकृति एक्जिस्ट करती है, इसीलिए कहा जाता है कि प्रकृति अनंत है।
नासतो विद्यते भावो नाभावो विधते सतः
नासतो विद्यते भावो नाभावो विधते सतः
जो चीज जहां पर नहीं है वहां से वह चीज निकल ही नहीं सकती। ऐसी प्रकृति तीन गुणों से युक्त है सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण जब यह तीनों गुणों में अवस्था में होते हैं तो दुनिया में कोई भी चीज पैदा नहीं होती। क्योंकि प्रकृति में जड़ता है चेतना तो उसमें है ही नहीं। अब कोई चीज पैदा हो इसीलिए प्रकृति में चेतना का होनी जरूरी है और इस प्रकृति को एक्टिवेट करता है। पुरुष।
पुरुष यानी प्योर चेतना जिसे हम शिव तत्व कहते हैं और इस पुरुष में जड़ता नहीं है। और भौतिकता नहीं है न उसमें कोई परिवर्तन हो सकता है और ना कोई बदलाव आ सकता है , वह जैसा है जबसे तब से वैसा ही है।
पुरुष यानी प्योर चेतना जिसे हम शिव तत्व कहते हैं और इस पुरुष में जड़ता नहीं है। और भौतिकता नहीं है न उसमें कोई परिवर्तन हो सकता है और ना कोई बदलाव आ सकता है , वह जैसा है जबसे तब से वैसा ही है।
पुरुष एक की ओर चेतना है और प्रकाश है अब प्रकृति यह चाहती है कि मैं किसी तरह से अपने आप को व्यक्त करूं मेरे अंदर शक्ति है।
प्रकट करने की लेकिन प्रकट कैसे करूं कि चेतना नहीं है। रास्ता पता नहीं है automatic कुछ नही है, और वह पुरुष सोचता है यह करने के लिए कि मैं क्या हूं मुझे कोई ऐसा माध्यम चाहिए कि मैं अपने आप को जान सकूं और जब पुरुष और प्रकृति शिव और शक्ति गॉड इन एनर्जी का संयोग होता है तो सब कुछ प्रकट होने लगता है।
सर्जन होने लगता है ,अणुओं का मटेरियल बनने लगता है ,आपस में जोड़ने लगते हैं। ब्राह्ममन्डं बनने लगते हैं, देवी देवता प्रकट होने लगते हैं, जीव सृष्टि जन्म लेने लगते है, दिन और रात होने लगते हैं और यह सारी सृष्टि ऑटोमेटिक बनने लगती है और उसको ऑटोमेटिक बनाने वाला वहीं पुरूष शिव तत्व है।
*शिव और शक्ति पुजा करे-
पुरुष और प्रकृति शिव और शक्ति के मिलन को सिमलाइज करने के लिए चिन्हित करने के लिए शिवलिंग का सर्जन हुआ है।
शिव - पार्वती के एक रूप होने का प्रतीक तो वहीं मां पार्वती शक्ति , प्रेम और समर्पण की पर्याय हैं , जिनकी आशीष में ही सृष्टि फल - फूल रही है तो वहीं ' शिवलिंग ' शिव पार्वती के एक रूप होने का प्रतीक है । जो संसार में पुरुष और स्त्री के अस्तित्व के एक समान होने को व्याखित करता है , जो स्पष्ट करता है कि अकेला पुरुष और अकेली स्त्री सृष्टि का निर्माण नहीं कर सकते हैं । सृष्टि को आकार देने के लिए दोनों की भागीदारी बेहद जरूरी है , एक - दूसरे के बिना दोनों अधूरे हैं ।
अब यह याद रहे कि शिव कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो इस सृष्टि में कहीं निवास कर रहा हो। शिव चेतना की परम अभिव्यक्ति है जिसकी आगे कोई विभाज्यता नहीं है। एक अस्तित्वहीन अस्तित्व नाम और रूप से परे अस्तित्व और इस निर्गुण अनंत शुद्ध चेतना को शिवलिंग के माध्यम से दर्शाया जाता है ,और इसी परम तत्व को सगुण रूप में भगवान शंकर के रूप में दर्शाया जाता है। शिव निर्गुण भ्रम के प्रतीक है तो शंकर शगुन भर्म के प्रतीक है।
*शिवलिंग का आकार ऐसा क्यू है
अब हम जानते हैं कि शिवलिंग का आकार ऐसा ही क्यों है शिवलिंग शिव और शक्ति पुरुष और प्रकृति के मिलन का प्रतीक है ,तो प्रकृति को हम कैसे सिंबलाइज कर सकते हैं। यदि हम प्रकृति को पत्तियों के रूप में दर्शाते हैं तो प्राणी और दूसरे सभी तत्व छूट जाते हैं।
अब हम जानते हैं कि शिवलिंग का आकार ऐसा ही क्यों है शिवलिंग शिव और शक्ति पुरुष और प्रकृति के मिलन का प्रतीक है ,तो प्रकृति को हम कैसे सिंबलाइज कर सकते हैं। यदि हम प्रकृति को पत्तियों के रूप में दर्शाते हैं तो प्राणी और दूसरे सभी तत्व छूट जाते हैं।
यदि हम प्रकृति को मनुष्य के रूप में दर्शाते हैं तो भी प्रकृति को पूर्ण रूप से नहीं दर्शा पाते हैं क्योंकि प्रकृति अनंत है और अनंत और विशाल प्रकृति को दर्शाने के लिए लिए जाने वाला प्रतीक भी विशाल होना चाहिए। जैसे कि galaxy ya ब्राह्ममन्डं और प्रकृति को ब्राह्ममन्डं के रूप में दर्शाना एकदम सही है। क्योंकि उसने प्रकृति के ज्यादातर सभी तत्व शामिल हो जाते हैं और शिवलिंग का जो नीचे का हिस्सा है वह प्रकृति है। जो ब्रह्मांड के आकार को दर्शाती है और भौतिक जगत को भी दर्शाती है।
शिवलिंग का ऊपर का हिस्सा ऐसा क्यों बनाया गया है तो आज भी जब हम परम तत्व को दर्शाते हैं तो उसे हम एक ज्योति के रूप में दर्शाते है और इस परम शुद्ध चेतना शिवत्व को ज्योति रूप के सिवा और किसी रूप में दर्शा ही नहीं सकते।
भारत में जो 12 स्वयंभू शिवलिंग है उन्हें भी ज्योतिर्लिंग ही कहा जाता है और श्वेत ज्योति रूप होने के कारण ही भगवान शिव को कर्पूरगौरम कपूर के जैसे गोरे वर्ण के कहा जाता है। और जब शिव और शक्ति के इन प्रतीकों को एक रुप करके उन्हें पत्थर पर उकेरा गया और जो प्रतीक हमारे सामने आया वह है शिवलिंग।
* अब हम जानते हैं कि शिवलिंग क्यों पूजनीय हैं और शिवलिंग से हमें क्या बोध मिलता है---
शिवलिंग भगवान शिव और माता आदिशक्ति का प्रतीक तो है ही और शिव और शक्ति से परे कोई चीज हो ही नहीं सकती और इसीलिए सभी देवी देवता, ब्रह्मा विष्णु और शंकर शिवलिंग में ही निहित है और इसलिए शिवलिंग का पूजन करने से सभी देवी देवताओं का भी पूजन हो जाता है।
जब हम शिवलिंग को नमन कर रहे होते हैं तब उस पुरुष अर्थात परम चेतना को नमन कर रहे होते हैं।
शिवलिंग से हमें बोध मिलता है कि जिस तरह से पुरुष यानी कि सिर्फ इस प्रकृति के मध्य में रहते हुए भी प्रकृति में लिप्त नहीं हो जाते उसी तरह हम जीव भी इस शरीर रूपी प्रकृति में रहते हुए शिव की तरह प्रकृति रूपी शरीर की मायाजाल में लिप्त नहीं हो जाना है।
हमें जीव से शिव बनने की कोशिश करनी चाहिए और हमारी चेतना के स्तर को ऊपर उठाना चाहिए। अब यदि पृथ्वी पर से सभी मानव सभ्यता नष्ट हो जाए और मानो की सारी पृथ्वी ही नष्ट हो जाए तो क्या भगवान शिव और शिवलिंग रहेंगे या नहीं और मानो की सारी पृथ्वी नष्ट हो जाती है और लाखों साल बाद किसी दूसरे ग्रह पर नई सभ्यताएं विकसित होती हैं तो उनमें से इज्पट जैसी कोई सभ्यता जब सृष्टि के मूल कारण का पता लगाएंगे तो वह शिव और शक्ति को अंत के रूप में चिन्हित करेंगे।
जिसमें अंक का नीचे का हिस्सा शक्ति को दर्शाता है और ऊपर का हिस्सा परम शुद्ध चेतना शिव को दर्शाता है और चाइना जैसी कोई सभ्यता शिव और शक्ति को यह और यीन और यांग के रूप में चिन्हित करेंगे। जिसमें काला रंग प्रकृति को दर्शाता है और सफेद रंग शिवत्व को दर्शाता है।
अब सवाल यह बाकी रहता है एलियंस भगवान शिव ने मानते हैं।
भगवान शिव में मानते ही होंगे क्योंकि भगवान शिव यूनिवर्सल है। बस फर्क सिर्फ इतना हो सकता है कि शिव के नाम और प्रतीक अलग हो सकते हैं। भगवान शिव सनातन है सृष्टि के मूल कारण है आदि ,अनादि है। सृष्टि रहेंगी तो भी शिव होंगे और सृष्टि नहीं रहेगी तो भी शिव होंगे।
आकाश को भी' शिवलिंग ' कहा गया है। वहीं ' हमारे स्कंद पुराण ' में आकाश को ' शिवलिंग ' के रूप में वर्णित किया गया है । उसमे साफ तौर पर ये कहा गया है कि सभी को एक दिन इसी ' शिवलिंग ' में विलीन होना है ।
Disclaimer-
आज के इस लेख में जितना मुझसे हो सका शिवलिंग के बारे में आपको बताने की कोशिश की अगर आपको कहीं पर भी कोई कमी लगे हो तो प्लीज मुझे कमेंट करके जरूर बताएं । यह सब कुछ मैंने अपने धर्म शास्त्रों के अनुसार आपको बताया है
इसमें मेरी खुद की कोई राय नहीं है ।
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