जीवन की इस भाग दौड़ में आज हर इंसान सुख, शांति और धन के लिए भाग रहा है, पर सब कुछ कमा कर भी कई बार इंसान इतना बेचैन और चिंतित है कि उसके पास सब कुछ होते हुए भी ऐसा अनुभव करता है। जैसे दुनिया का सबसे गरीब व्यक्ति वही हो, क्योंकि हर किसी के पास कोई ना कोई समस्या है। इन सब समस्याओं से बचने के लिए ध्यान साधना ही सबसे उत्तम मानी जाती हैं। आज हम इसके बारे में आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं कि साधना किस प्रकार करें और इसका अनुभव प्राप्त करके आप किस प्रकार जीवन में सुख शांति प्राप्त कर सकते हैं।
ध्यान साधना से लाभ और विधि :-
साधना के लिए हाथ ,मुंह धोकर किसी शान्त या एकान्त स्थान निर्जन , कोलाहल रहित स्थान घर का स्वच्छ हवादार कमरा नदी तट अथवा उपवन में आराम कुर्सी पर अथवा दीवार , वृक्ष के सहारे बैठकर भी यह साधना भली प्रकार होती है ।
आप अपनी सुविधापवूक बैठ जाइये तीन लम्बे - लम्बे श्वांस लीजिए । पेट में भरी हुई वायु को पूर्ण रूप से बाहर निकालना और फेंफड़ों में पूरी हवा भरना एक पूरा श्वांस कहलाता है ।
तीन पूरे श्वांस लेने से हृदय और फुस्फुस की भी उसी प्रकार एक धार्मिक शुद्धि होती है । जैसे स्नान करने , हाथ पांव धोकर बैठने से शरीर की शुद्धि होती है ।
तीन पूरे सांस लेने के बाद शरीर को शिथिल कीजिए और हर अंग में से खिंचकर प्राणशक्ति हृदय में एकत्रित हो रही है , ऐसा ध्यान कीजिए ।
हाथ पांव आदि सभी अंग प्रत्यंग, शिथिल , ढीले , निर्जीव , निष्प्राण हो गये हैं ऐसी भावना करनी चाहिये । " मस्तिष्क से जब विचारधारायें और कल्पनायें शान्त हो गयी और समस्त शरीर के अन्दर एक शान्त नीला आकाश व्याप्त हो रहा है ।
ऐसी शान्त , शिथिल अवस्था को प्राप्त करने के लिए कुछ दिन लगातार प्रयत्न करना पड़ता है । अभ्यास से कुछ दिन में अधिक शिथिलता एवं शान्ति अनुभव होती जाती है । शरीर भली प्रकार शिथिल हो जाने पर हृदय स्थान में एकत्रित अंगूठे के बराबर , शुभ श्वेत ज्योति - स्वरूप , प्राण शक्ति का ध्यान करना चाहिये ।
अजर अमर , शुद्ध , बुद्ध , चेतन , पवित्र ईश्वरीय अंश आत्मा में हूँ ।
मेरा वास्तविक स्वरूप यही है , मैं सत् चित्त , आनन्द - स्वरूप आत्मा हूँ । " उस ज्योति के कल्पना नेत्रों से दर्शन करते हुए उपरोक्त भावनायें मन में रखनी चाहिये । यह ध्यान नित्य करने से आपको परम शान्ति अवश्य मिलेगी । यह अनुभव आप किसी अनुभवी गुरुदेव की कृपा से भी प्राप्त कर सकते और खुद भी प्रतिदिन नियम से करने से धयान लगना शुरू हो जाता है।
धयान से परमात्मा को पाने का रास्ता-
ध्यान ' से ही परमात्मा को पाया जा सकता है , ध्यान से तो यह सुख प्राप्त किया जा सकता है . जिसके पाने से दूसरे सुख तुच्छ लगने लगते हैं ' ध्यान ' से पता चलता है , वस्तुतः वह मैं नहीं हूँ ..... मैं शरीर तो हूं नहीं , मैं तो इसके मौजूद ' जीवात्मा ' हूं .... ईश्वर का ही एक अंश हूँ ... ध्यान से यह पता चलता है कि दिखने वाली हर वस्तु एक दिन नहीं रहनी .... वह है ' आत्मा ' जो न मरती है , न सड़ती है , न गलती है .... जो जेसी है , वैसी ही रहती है ..... सत्य की खोज मुश्किल है और जब सत्य मिल जाता है तो असीम आनंद मिलता है ।
ध्यान से सत्य भी मिल जाता है । जब आप को ' ध्यान ' मिल जाएगा .... आपको पद , धन - सम्पदा , सुख - एश्वर्य स्थ - घोड़े . तुच्छ लगने लगेंगे।
यह एक ऐसी दौलत है जिसको पाने के बाद फिर किसी और दोस्त की इच्छा नहीं रहती।
धयान और अभ्यास-
इस प्रकार आप प्रतिदिन अभ्यास से अपने आप को भगवान के बहुत करीब पा सकते हो और ध्यान साधना मन लगाकर करने से हर तरह का सुख आपको प्राप्त हो सकता है। ध्यान साधना से जो सुख प्राप्त होता है वह संसार में किसी और वस्तु से हमें नहीं प्राप्त हो सकता। इसमें किसी भी प्रकार का शक नहीं है। ध्यान साधना से लाभ ही लाभ हैं नुकसान कोई भी नहीं है। घयान साधना में सफलता पाने के लिए नियम का पालन आपको अवश्य करना पड़ेगा क्योंकि 1 दिन करने से कभी भी ध्यान साधना सफल नहीं हो सकती इसके लिए आप दिन कम से कम अपने लिए 20 मिनट से निकालने पड़ेंगे और अगर संभव हो तो एक घंटा भी कम पड़ जाता है। ध्यान साधना में मन लगाने के लिए और उस मन की शांति को प्राप्त करने के लिए और अगर ध्यान साधना से लाभ चाहते हो तो इसके लिए आपको इसको प्रतिदिन करना पड़ेगा।
Last alfaaz-
जितने भी दुनिया में संत हुए हैं उन सब ने ध्यान साधना को ही अपने जीवन का मकसद बना लिया था। जो हमें धयान से मिल सकता है वह किसी और चीज से नहीं मिल सकता।
इतिहास गवाह है, संत कबीर और गुरु नानक जैसे महान आत्माएं सिर्फ ध्यान साधना करने के बाद ही भगवान को जान पाए हैं और आज उनको हम सब भगवान की तरह ही पूजते हैं। उन सब का जन्म भी हमारे की तरह ही हुआ था वह भी मां के गर्भ से ही जन्म लेकर आए थे, पर वह हम सबसे दुनिया में अलग हैं क्योंकि उन्होंने ध्यान साधना की और वह सब कुछ प्राप्त किया जो एक आम इंसान के बस से बाहर है तभी वह लोग संत कहलाते हैं।
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