जनेऊ (यज्ञोपवीत) पहनने के सवास्थय लाभ-
हिंदू धर्म में, जप, तप यज्ञ और जनेऊ का बहुत ही महत्व माना जाता है, क्योंकि हिंदू धर्म में पूजा की शुरुआत यज्ञ की जाती है। सभी घर्म और कर्म की जो भाव को इतना महत्व इसलिए माना जाता है कि यह सब करने से घर में positive ऊर्जा का आगमन होता है । आइए जानते हैं इन सबके बारे में विस्तार से कि चंदन तिलक लगाने के क्या फायदे हैं। हम भी जो धर्म कार्य और पूजा पाठ करते उन सबका धार्मिक के प्रति आस्था और स्वास्थ्य के लिये लाभदायक अच्छी होती हैं।
सभी धर्म के कार्यों का संबंध हमारे स्वास्थ्य के साथ भी माना जाता है।
हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से एक है यज्ञोपवीत संस्कार जिसे जनेऊ भी कहते हैं। इस संस्कार में मुंडन और पवित्र जल से स्नान करने का ही बहुत महत्व रखता है।
जनेऊ का महत्व- यगोपवित (जनेऊ) भारतीय संस्कृति का मौलिक सुत्र है। इसका संबंध हमारे अध्यात्मिक, आधिदैविक तथा अतिभौतिक जीवन से है । अर्थात् जनेक को यज्ञसुत्र तथा ब्रह्मसूत्र भी कहा जाता है । बाये कन्धे पर स्थित जनेऊ देव भाव और दाएं कंधे पर स्थित पितरभाव घोतक है । मनुष्य से देवत्व प्राप्त करने के लिए यगोपवित सशक्तत साधन है। यज्ञोपवीत का हमारा स्वास्थ्य से बहुत गहरा संबंध है। दिल, आंतों और फेफड़ो पर यज्ञोपवीत पर गहरा व्याकप
प्रभाव पड़ता है।
सवासथय लाभ ---
* वैज्ञानिक आधार है कि ये धारण करने से आँतों की आकर्षण गति बढ़ती है , जिससे कब्ज दूर होती है तथा मूत्राशय की मांसपेशियों का संकोच वेग के साथ होता है।
*कान के पास की नसे दबने से बढ़े हुए रक्तचाप को नियंत्रित तथा कष्ट से होने वाली श्वाँसक्रिया को सामान्य किया जा सकता है ।
* कान पर लपेटी गयी जनेऊ मल - मूत्र तयाग करते हुए, त्याग के बाद अशुद्ध हाथों को तुरंत साफ करने हेतु प्रेरित करती है।
* यज्ञोपवीत धारण करने के बाद बार - बार हाथ - पैर तथा मुख की सफाई करते रहने से बहुत से संक्रामक रोग नहीं होते ।
* योगशास्त्रों में स्मरणशक्ति तथा नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिये ' कर्णपीडासन का बहुत महत्व है । इस आसन में घुटनों द्वारा कान पर दबाव डाला जाता है । कान पर कसकर जनेऊ लपेटने से कर्णपीडासन के सभी लाभों की प्राप्ति होती है ।
आयुर्वेद ने यह सिद्ध किया है कि कान के मूल में चारों तरफ दबाव डालने से हृदय मजबूत होता है ।
जीवाणुओं और कीटाणुओं से बचाव-
लोग इसे इसलिए भी पहनते हैं ताकि गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणु और कीटाणु के प्रकोप से बच सकते हैं।
* जनेऊ पहनने से नसों पर दबाव पड़ता है जिसका सीधा संबंध हमारी आंतो पर पड़ता है और आंतों पर दबाव पड़ने से कब्ज की शिकायत नहीं होती तथा पेट साफ होने पर शरीर तन और मन से निर्मल रहता है।
बीपी से बचाव-
एक अध्ययन के अनुसार यह भी पाया गया है कि जिन लोगों ने जनाऊ को धारण किया है उन लोगों को बीपी की शिकायत और लोगों के मुकाबले में कम होती है और जनेऊ खुन के दौरे को कंट्रोल करने में हमारी मदद करता है।
मानसिक बल मिलता है-
जनेऊ धारण करने की एक वजह यह भी मानी जाती है कि इसके धारण करने से मानसिक बल मिलता है। यह लोगों को हमेशा बुरे विचारों और बुरे कामों को से दूर रहने की याद दिलाता रहता है। साथ में यह भी धारणा है कि जनेऊ पहनने वालों के पास बुरी आत्माएं नहीं प
फटकती इसमें सच्चाई कितनी है यह हम नहीं जानते, पर केवल मन में इसका गहरा विश्वास होने भर से फायदा अवश्य होता है। और धर्म से जुडी हुई यही मान्यता रही है कि विश्वास होना बहुत जरूरी है चाहे वह भगवान पर हो या धार्मिक धागे , जनेऊ आदि चीजों पर हो।
चंदन का तिलक लगाने का महत्व-
स्वास्थ्य के प्रति जागरूक और प्रकृति प्रेमी सभी चंदन के गुणों से भलीभांति परिचित होंगे । प्रातः माथे पर गुणकारी चंदन का तिलक लगाने से न केवल दिनभर में ठंडक व शांति का अनुभव होता है , बल्कि मोतिया बिन्द रोग में तो चंदन का टीका विशेष रूप से प्रभावकारी है ।
शरीर के खासतौर से नाभी पर चंदन का लेप बोरनकाइटिस , दमा , मानसिक तनाव , नर्वस सिस्टम आदि जैसे रोगों पर अपना विशेष प्रभाव दिखाता है ।
चन्दन तिलक विधि-
जो तिलक नहीं करता है , उसके यज्ञ , दान , जप होम , स्वाध्याय और पितृ कर्म आदि के लिए हुए शुभ कर्म सब व्यर्थ ( निष्फल ) होते हैं। मांगलिक उत्सव , विवाह , पूजन आदि में तिलक लगाया जाता है ।
ललाट पर तिलक अनामिका एवं अँगूठे से लगाया जाता है ।
तिलक लगाने वाला अपनी मंगल भावनाओं को प्रवाहित करता है यौगिक दृष्टि से ललाट में जहाँ तिलक लगाया जाता है , वह स्थान द्विदल कमल का होता है ।
जो तिलक से स्पर्श होने से अदृष्ट शक्ति ग्रहण कर तेजोमय हो जाता है , व्यक्तित्व अच्छा बन जाता है ।
चकली से चंदन किसी पात्र में रखकर देवताओं को चढाना चाहिये । सिर्फ चकली से लेकर चंदन चढ़ाने से दोष लगता है पतला चन्दन चढ़ाना निषिद्ध माना जाता है ।
आचमन का महत्व-
जैसे मार्जन के द्वारा बाह्य शरीर पर प्रभाव डाला जाता है , वैसे ही आचमन के द्वारा अन्त: शरीर पर प्रभाव डाला जाता है । आचमन से मानसिक उत्तेजना शान्त हो जाती है ।
आचमन का विशेष उपयोग मनः शुद्धि के लिए ही है । संकल्प के लिए जिस तांबे या चांदी के चम्मच में जल ग्रहण किया जाता है , उसे आचमनी कहते हैं और जिस पात्र में शुद्ध जल रखते हैं उसे पंचपात्र कहते हैं । तीन बार आचमन करने की क्रिया धर्म ग्रंथों द्वारा निर्दिष्ट है। तीन बार आचमन करने से कायिक , मानसिक और वाचिक , त्रिविध पापों की शरीर की शुद्धि हो जाती है । निवृति होकर व्यक्ति को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है । आचमन करने से अतः पूजा शुरू करने से पहले और बाद में छींक आ जाने पर पूजा के बीच में उठ जाने पर आचमन करना अति आवश्यक है ।
आचमन पवित्र जल से करें-
आचमन करने से " अभ्यन्तर ' ( भीतरी ) शुद्धि हो जाती है । जूठे मुख से कोई भी पूजा - पाठ , दान - धर्म करने से पहले सर्व प्रथम , शरीर एवं मुख शुद्धि हेतु अपने आराध्य देव के सन्मुख बैठकर पवित्र जल से 3 बार ... ॐ माधवायनमः केशवायनमः नारायणायनमः का उच्चारण करते हुए 3 बार आचमन करें और अन्त में गोविन्दायनमः कहकर हस्त प्रक्षालम् ( हाथ को घोलेवें । ) आचमन दाहिने हाथ में 1 छोटी चम्मच ( आचमनी ) में जल लेकर करें । आचमन करते समय मन में यह भावना करें कि शुद्ध जल से आचमन 3 बार करके मैं शुद्ध होकर धर्म - कर्म कार्य कर रहा हूँ । उसके सारे सुफल की प्राप्ति मुझे अवश्य होए ।
निष्कर्ष- जो भी धर्म से जुड़े हुए संस्कार हैं वह सब विश्वास के बल पर ही हैं चाहे वह चंदन का तिलक , जनेऊ , मन्तर, अन्तर आदि सबसे पहले इन में हमारा विश्वास होना बहुत जरूरी है। अगर आप विश्वास करके कोई भी चीज धारण करते हो तो वह फिर राख चुटकी भी काम कर जाती है। अगर मन में विश्वास ही नहीं है तो फिर किसी भी प्रकार की पूजा पाठ काम नहीं आती इसलिए इस लेख के माध्यम से जो भी आपको बताया गया है । वह सब विश्वास के ऊपर ही है। यह सब जो भी लिखा गया है इसमें हमारा खुद का कोई योगदान नहीं है। यह सब धर्म के अनुसार लिखा गया है । अगर आप भगवान को मानते हो तो फिर यह सब चीजें भी काम करती हैं। जो लोग भगवान को ही नहीं मानते उनके लिए कोई भी चीज काम नहीं कर सकती सारा खेल विश्वास का है।
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