सिंघाड़ा खाने के फायदे | सिंघाडे के गुण | trapa natans benefits |

मौसमी फल सिंघाड़ा ( Trapa Natans ) खाने के फायदे और सवासथय लाभ- आज हम आपको मौसमी फल सिंघाड़ा खाने के फायदे के बारे में इस लेख के  माध्यम से विस्तार से बताने की कोशिश करेंगे। आईए जानते हैं सिंघाड़ा खाने के फायदे।

 गर्भस्थापन द्रव्यों को आयुर्वेद में प्रजास्थापन कहा गया है । जो द्रव्य गर्भ की उत्पत्ति या स्थिति में बाधक दोष या रोग को दूर कर गर्भ धारण कराये , उसे प्रजास्थापन कहा जाता है । इन प्रजास्थापन द्रव्यों में सिंघाड़ा भी एक ऐसा मौसमी फल है । जलफल या पानी फल के नाम से ही यह सिद्ध है कि यह पानी में होने वाला फल है । समस्त भारत में तालाबों में इसके पौधे लगाये जाते हैं । बिहार , उड़ीसा , उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश आदि में यह तालाबों में खूब होता है । 

शीतकाल में ताजा फल बाजारों में खूब होता है । कोमल कच्चे फलों की गिरी की तरकारी बनाते हैं । कच्चे फलों को यों ही या उबालकर खाते है । पके फलों को छीलकर अन्दर का सुखाया हुआ गूदेदार भाग हमेशा पंसारियों के यहां मिलता है।
 इसके आटे की रोटियां या हलवा बनाकर खाया जाता है । यह पौष्टिक आहार होने के साथ - साथ फलाहार भी माना गया है । व्रत उपवास जिनमें अन्न खाना निषिद्ध होता है वहां सिंघाड़े को फलाहार के रूप में उपयोग में लाया जाता है । 
ये त्रिकोणाकार फल कच्ची हालत में हरे और पकने पर काले हो जाते हैं इनके ऊपर दो कोणों पर दो बड़े कांटे होते हैं । फल के छिलके हटाने पर सिंघाड़ा निकलता है जो कच्ची हालत में दूधिया रसदार होता है और सूखने पर सख्त हो जाता है । इसे संस्कृत में श्रृंगाटक और अंग्रेजी में वाटर कैल्ट्रास कहते हैं । इसका लैटिन नाम ट्रेपा नेटान्स है ।

सिंघाड़े के गुण-
 सिंघाड़े में मुख्य रूप से स्टार्च और मैग्नीज होता है । खनिज द्रव्यों में कैल्शियम , फास्फोरस , ताम्र , मैग्निशियम , 
सोडियम , पोटाशियम और आयोडिन होता है , विटामिन ए . बी और सी होते हैं । यह मीठा तथा कसैला रसयुक्त और ( शीतवीर्य ) है । 

इसके खाने से पित्त का शमन होता है और वायु तथा कफ की वृद्धि होती है । ठण्डी तासीर वाला होने से पित्त के रोगों में इसे उपयोग में अधिक लाते हैं । पके सिंघाड़े की अपेक्षा कच्चा सिंघाड़ा अधिक मीठा और रुचिकर होता है । जिन स्त्रियों का गर्भाशय निर्बल हो गया हो , वे गर्भधारण नहीं कर पाती हैं , उन्हें सिंघाड़ा अवश्य खिलाना चाहिये । सिंघाड़ा उनके प्रदरादि को दूर कर गर्भाशय को बल प्रदान करता है । इसके सेवन से यदि कोई अन्य विशेष विकृति नहीं है तो वे गर्भधारण कर लेती हैं । जो स्त्रियां गर्भ तो धारण कर लेती हैं किन्तु उन्हें 
गर्भस्राव हो जाता है वे भी इसका सेवन करें तो गर्भस्राव नहीं होता । यही नहीं , इसके नियमित सेवन से स्त्री गौरवर्ण संतान को जन्म देती है , इस प्रकार से यह स्त्रियों के लिये परमोपयोगी है ।
 यह स्त्रियों के लिये ही नहीं अपितु पुरुषों के लिये भी उतना ही उपयोगी है । यह वीर्यवर्धक तथा पौरुष शक्तिवर्धक है । जिन युवकों का वीर्य पतला पड़ गया हो वे इसे सेवन कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं । युवकों के बहुत से रोगों में यह लाभदायक सिद्ध हुआ है । 
थायराइड ग्रन्थि की विकृति में ताजा सिंघाड़ा अथवा सूखा चूर्ण सदा पथ्य है । जो स्त्री - पुरुष दुबले पतले हैं उन्हें यह मामूली फल पुष्ट बना देता है । इसके अतिरिक्त यह किसी अंग से गिरते खून को रोकता है , चाहे वह खूनी बवासीर हो , खूनी दस्त हो , नकसीर हो या रक्तप्रदर हो इन सभी में यह लाभ करता है। 
बुखार के रोगी का यह संताप , अधिक प्यास लगना , घबराहट आदि मिटा कर उसे आराम पहुँचाता है । इसके सेवन से मूत्र खुलकर आता है और मल बंधा हुआ आता है । सिंघाड़े के आटे में दोगुना गेहूं का आटा मिलाकर बनाई गई रोटी अत्यन्त स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है । ये बड़े बच्चों के लिये , गर्भवती स्त्री के लिये और प्रत्येक कमजोर स्त्री - पुरुष के लिये विशेष लाभदायक होती है । 

* सिंघाड़े का औषधि के रूप में उपयोग कैसे करें- 
1. श्वेतप्रदर सूखा सिंघाड़ा 50 ग्राम , बड़ी इलायची के बीज 25 ग्राम , इमली के बीज 25 ग्राम और मिश्री 100 ग्राम लेकर सबको पीसकर बारीक चूर्ण कर रखें । इसमें से 5-5 ग्राम चूर्ण सुबह - शहद के साथ और रात में सोते समय दूध के साथ दें । शीघ्र लाभ होगा ।
 बबूल का गोंद मिलाने से यह अधिक लाभप्रद है ।

 2. रक्तप्रदर सूखा सिंघाड़ा 50 ग्राम , कमलगट्टा की 7 गिरी 20 ग्राम , छोटी इलायची के दाने 10 ग्राम , वंशलोचन 20 ग्राम , मिश्री 100 ग्राम लेकर सबको पीसकर चूर्ण बना लें , सुबह - शाम 5-5 ग्राम चूर्ण चावलों के धोवन से दें । रोग की अधिकता में दिन में  3-4 बार दें ।
 चावलों का धोवन के लिये 20 ग्राम चावलों को कूटकर 160 मिली . पानी में भिगो दें । दो घंटे भीगने के बाद उन्हें मसलकर छान लें , यही पानी चावलों का धोवन है । इस पानी को काम में लायें । भिगोने से पहले चावलों पर लगी पालिश धोकर उतार लें ।

गर्भाशय की शिथिलता -
सिंघाड़े का आटा 50-60 ग्राम लेकर घी में भून लें फिर इसमें हलुवे की तरह आवश्यकतानुसार शक्कर की चाशनी डाल दें । यह हलवा नित्य सुबह खिलायें और फिर दूध पिलायें इस हलवे के सेवन से गर्भाशय की शिथिलता दूर होती है । वैसे इस हलवे में एक ग्राम दालचीनी चूर्ण और दो ग्राम बड़ी इलायची के बीजों का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से गर्भाशय को शक्ति मिलती है ।
 4. गर्भस्राव उक्त सिंघाड़े के हलवे में 5-7 ग्राम बबूल गोंद को छोटे टुकड़े करके भी में तल कर इसमें तीन - चार छोटी इलायची के दानों को पीसकर मिलायें और सेवन करें । साथ में मिश्री मिले गाय के दूध का सेवन करें ।

 5. वीर्य वृद्धि हेतु सिंघाड़ा का चूर्ण और छिलके युक्त उड़द की दाल का चूर्ण दोनों को बराबर लेकर घी में भून लें । इसमें आवश्यकतानुसार बूरा शक्कर मिला लें । यह चूर्ण 20 ग्राम , शब्द 10 ग्राम और शुद्ध घी 5 ग्राम मिलाकर सुबह शाम सेवन करें । 6. स्वप्नदोष सिंघाड़ा 250 ग्राम , आंवला चूर्ण 100 ग्राम छोटी हरड़ का चूर्ण 100 ग्राम , हल्दी 50 ग्राम और मिश्री 300 ग्राम लेकर सबका चूर्ण बनाकर दिन में 5-5 ग्राम 2-3 बार सेवन करें । 

स्मरणशक्ति बढ़ाने हेतु-
 एक सिंघाड़ा , पांच बादाम और पांच कालीमिर्च को रात में भिगोकर सुबह पीसकर घी में भून लें । इसमें दूध मिलाकर खाने से याददाश्त बढ़ती है ।

 8. वमन-
 एक चम्मच सिंघाड़े का चूर्ण ( 5-7 ग्राम ) , बड़ी इलायची के बीजों को सेक कर बनाया गया चूर्ण 2 ग्राम , दोनों को शहद में मिलाकर चटाने से गर्भवती को होने वाली उल्टियां भी मिटती हैं । 

9. पेशाब में जलन ताजा सिंघाड़े खायें या सिंघाड़े के आटे को पानी में मिलाकर एवं शक्कर मिलाकर सेवन करने से पेशाब में होने वाली जलन मिटती है ।

10. प्रमेह- 
 सभी प्रकार के पित्तज प्रमेहों में सिंघाड़ा 5 ग्राम और धनिये की गिरी 3 ग्राम पीसकर सेवन करें । के लिये लाभदायक कहा गया है । 

11. अम्लपित्त-
 कच्चे सिंघाड़े खाना अम्लपित्त के रोगी के लिए लाभदायक माना गया है।

 12. गले के रोग-
 सिंघाड़े में आयोडीन होने से यह गले के कई रोगों में लाभ करता है । कच्चे सिंघाड़े खाने से गले के टांसिल ठीक होते हैं । इनके सेवन से आवाज में भी मधुरता आती है । गले में खरखराहट हो तो सिंघाड़े के चूर्ण को शहद में मिलाकर सेवन करें । ताजा सिंघाड़े के छिलकों को पानी में उबालकर कुल्ले ( गरारे ) करने से गले की सूजन मिटती है । 

13. रक्तपित्त-
 कच्चे सिंघाड़े का रस निकालकर सेवन करने से नाक से गिरता खून बन्द होता है । इससे किसी प्रकार की कहीं भी होने वाली जलन मिटती है । इसके स्थान पर ताजा सिंघाड़ा भी खाया जा सकता है । ताजा सिंघाड़े उपलब्ध न होने पर सूखे सिंघाड़ों का चूर्ण ठण्डे पानी के साथ सेवन हितकर है । 

14. अधिक प्यास लगना-
 ताजा सिंघाड़ों का सेवन करने या इसके रस का सेवन करने से अधिक प्यास लगना बन्द होता है । 

16. अतिसार -
सिंघाड़े के आटे को पानी में घोलकर पेय बनाकर पीने से लाभ होता है । इसमें नमक , मीठा सोडा और चीनी मिलाकर सेवन से अधिक लाभ होता है । इससे जलाभाव ( डिहाइड्रेशन ) की स्थिति भी नहीं बनती है । 

17. मूत्रकृच्छ-
 सिंघाड़ों को पानी में उबाल इनका क्वाथ ( काढ़ा ) बनाकर ठण्डा होने पर छान लें , इस काढ़े को पीने से मूत्रकृच्छ दूर होकर पेशाब साफ आता है और रोगी को आराम मिलता है । इससे पेशाब का अधिक पीलापन भी दूर होता है ।

 18. केशरोग-
 कच्चे सिंघाडे सेवन करने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में लोहा मिलता है जिसे खून बढ़ाने के साथ ही सर के बाल भी काले और चमकदार होते हैं इसके आटे से बालों को धोना भी उपयोगी माना जाता है।

19. दुग्धाल्पता-
 सिंघाड़ा का आटा , शतावरी और सौंउको दूध में पकाकर सेवन करने से दूध की वृद्धि होती है । 

20. दाद- 
सूखे सिंघाड़े को नीबू के रस में घिसकर दाद पर लगाने से दाद धीरे - धीरे ठीक हो जाता है । 

21. नाखूनों के सौन्दर्य हेतु -
प्रतिदिन पांच ग्राम सूखे सिंघाड़े का चूर्ण सेवन करने से नाखूनों में निखार बढ़ता है ।

 22. चेहरे के सौन्दर्य हेतु-
 मुख के सौन्दर्य को निखारने में भी सिंघाड़े का उपयोग लाभकारी है । सिंघाड़े का आटा ( चूर्ण ) दूध में मिलाकर नित्य मुख पर लेप करने से चेहरे की रौनक बढ़ती है । इस लेप से झांईयां दूर होती हैं ।

 विशेष जानकारी  - 
 सूखा सिंघाड़ा दो वर्षों से अधिक पुराना ठीक नहीं है । अधिक पुराना प्रभावहीन हो जाता है । सिंघाड़े को मुख बन्द पात्र में रखकर नमी से बचाते हुए शीतल स्थान में सुरक्षित रखना चाहिये ।

 शीतल प्रकृति वालों के लिये यह हितकर नहीं है , अतः वे इसका सेवन नहीं करें तो अच्छा है । वे यदि सेवन करना चाहें तो कम मात्रा में करें तथा साथ में बड़ी इलायची , सोंठ आदि उष्ण द्रव्यों का भी सेवन करें ।

इसकी अधिक मात्रा वायु को बढ़ाती है । यह दीर्घपाकी है । अर्थात इसका पाचन देर से होता है , यह गैस भी करता है अत : इसकी अधिक मात्रा से पेट में दर्द होने की संभावना रहती है । अधिक मात्रा पत्थरी भी उत्पन्न कर सकती है । इसके साथ शक्कर या मिश्री का सेवन इसके अहितकर प्रभाव को दूर करता है । नमक और कालीमिर्च के चूर्ण के साथ सेवन करने से यह जल्दी पच जाता है और वायु को भी अधिक नहीं बढ़ाता है । नमक , कालीमिर्च और मिश्री इसकी अधिक मात्रा से होने वाली विकृतियों को दूर करते हैं । इसकी समुचित मात्रा 6 ग्राम से 25 ग्राम है । कच्चे सिंघाड़े की गिरी को पीसकर इसमें मसाले डालकर इसकी सब्जी भी बनाकर खाई जा सकती है । यह सब्जी शक्तिवर्धक , वीर्यवर्धक और रुचिकर होती है।
 इस प्रकार  सिंघाड़े को बहुत ही घरेलू औषधि और स्वास्थ्य लाभ के लिए रामबाण स्वास्थ्य माना जाता है।
Disclaimer-
यह एक सामान्य जानकारी है  अगर आपकी समस्या बहुत ज्यादा गंभीर है तो फिर आप अपने डॉक्टर खुद ना बने अपने नजदीकी डॉक्टर के खिलाफ अवश्य करें।





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ