त्रिफला कया और कैसे इस्तेमाल करें -अपनी छोटी छोटी बिमारियों के लिए-
त्रिफला ( आँवला , हरड़ , बहेड़ा ) की पूर्ण जानकारी आयुर्वेद में कहा गया है कि त्रिफला का प्रयोग करने से शरीर के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं । यह एक रामबाण औषधि है ।
यह शिशु से लेकर वृद्धों तक को लाभ पहुँचाता है । विद्वानों ने कहा है कि त्रिफला एक ऐसा रसायन है जो शरीर में पहुँचकर अपना अद्भुत प्रभाव अवश्य दिखाता है । यहाँ तक कि आधुनिक डॉक्टरों ने भी इसके गुणों को स्वीकार किया है ।
यह रोग को नष्ट करने के साथ - साथ रोग को होने से रोकने वाला भी माना जाता है है ।
* त्रिफला को कैसे बनायें-
हरड़ एक भाग , बहेड़ा दो भाग और आँवला चार भाग- इन्हें मिलाने से बनता है- त्रिफला ।
इन तीनों की सम्पूर्ण जानकारी इस प्रकार है : -
आँवला- आँवले के पेड़ भारत में सब जगह पाए जाते हैं । इसके अतिरिक्त आँवला ,जावा , मलाया , म्यांमार ( बर्मा ) , श्रीलंका आदि देशों में भी पाया जाता है । आँवले के फल बसंत ऋतु के बाद मई में आने शुरू हो जाते हैं । ये फल अक्टूबर तथा नवम्बर में भी मिलते हैं आँवले के प्रकार आँवले दो प्रकार के होते हैं-
1 देशी बीजू तथा बागी या कलमी ।
देशी आँवले कुछ छोटे होते हैं परन्तु कलमी आँवले छोटे अमरूद के आकार के होते हैं । कलमी आँवले को शाह आँवला , राज आँवला भी कहते हैं । ये गूदेदार होते हैं । इनमें रेशे भी नहीं होते हैं । इनका स्वाद अच्छा होता है।
यदि हम गुण और स्वाद की दृष्टि से देखें तो बीजू और कलमी आँवले में कोई विशेष अन्तर नहीं पाया जाता है ।
गुण -आँवले में प्रोटीन , कार्बोज , वसा , कैलोरी तथा विटामिन ' ए ' और विटामिन ' सी ' पाया जाता है । इसके अतिरिक्त खनिज लवण , फॉस्फोरस ,कैल्शियम , आयरन तथा जल भी होता है । आँवले के सूखने पर भी इसके तत्व नष्ट नहीं होते हैं । इसलिए इसका प्रयोग सुखाने के बाद त्रिफला चूर्ण में किया जाता है ।
आवले की विशेषता-
आँवले की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह जल्दी खराब नहीं होता है । इसमें जितना अधिक विटामिन ' सी मिलेगा । विटामिन ' सी , उतना किसी भी दूसरे फल में नहीं होता । अर्थात् यदि सौ ग्राम आँवला लिया जाये तो उसमें छः सौ मिलीग्राम विटामिन ' सी ' पाया जाता है। जयादातर विटामिन सी आग , धूप आदि की गर्मी से शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । लेकिन आँवले में पाया जाने वाला विटामिन ' सी ' आग पर पकाने तथा धूप में सुखाने पर भी नष्ट नहीं होता है , इसका मुख्य कारण यह है कि प्रकृति ने इसमें अम्लता तथा कई नए तत्व भरे हैं जो सुखाने और पकाने पर भी नष्ट नहीं होते।
आँवले में मधुर , खटटा , कषाय , कटु और तिक्त रस पाया जाता है । यह पसीने , चर्बी , कफ और गीलेपन को नष्ट करता है । यह रूखा , मधुर , कसैला और खट्टा होता है । इसके खाने से कफ तथा पित्त का नाश होता है ।
वास्तव में इसे त्रिदोषनाशक कहा गया है परन्तु कफ और पित्त सम्बन्धी दोषों को भली - भाँति दूर करता है । परन्तु वैसे तो अम्ल रस वाले फल मलबन्ध - कारक बताए गए हैं । आँवला अम्लीय होते हुए भी कब्ज को भगाता है । यह वीर्य से उष्ण नहीं होता । देखा गया है कि सभी खट्टी चीजें पित्त को बढ़ाती हैं परन्तु आँवला और अनार पित्तनाशक हैं । यही कारण है कि आँवले का प्रयोग अनेक रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है ।
आयुर्वेद में आँवला को अमृत - फल कहा गया है । यह हमारे शरीर के रोगों को ऐसे भगाता है जैसे एक माता अपने बालक की नजर उतारकर उसे स्वस्थ बनाने का प्रयास करती है ।
● हरड़ का प्रयोग कैसे करें -
त्रिफला में दूसरी दवा हरड़ है । हरड के पेड़ काफी बड़े - बड़े होते हैं । इसकी पैदावार उत्तर भारत के पहाड़ी स्थानों पर होती है । इसके अलावा यह चेन्नई , मैसूर , मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में भी होती है ।
हरड़ कितने प्रकार की होती है -
हरड़ की सात जातियाँ पाई जाती हैं- विजया , पूतना , रोहिणी , अभया , अमृता , जीवन्ती तथा चेतकी ।
परन्तु छोटी हरड़ , पीली औषधि के लिए केवल तीन प्रकार की हरड़ का प्रयोग होता है। छोग हरड़ और बड़ी हरड़ । विजया हरड़ विन्ध्याचल और चेतकी तथा पूतना हरड़ हिमालय की घाटियों में मिलती है । अभया हरड़ चम्पा देश में पाई जाती है । रोहिणी जाति की हरड़ सिन्धु नदी के किनारे तथा जीवन्ती हरड़ सौराष्ट्र प्रदेश में पाई जाती विजया हरड़ भारत के प्रत्येक क्षेत्र में उत्पन्न होती है ।
बाजार में विजया जाति की हरड़ बिकती है परन्तु हिमालय में पाई जाने वाली हरड़ से अच्छी कोई हरड़ नहीं होती है ।
हरड़ में टैटिक एसिड , गैलिक एसिड तथा एसिड काफी मात्रा में होती है । आयुर्वेद के अनुसार हरड़ में बहुत गुण होते हैं । इसे अनोखी और रसायन वाली औषधि कहा गया है । इसमें अम्लता , मधुरता , कटुता , कषायपन तथा तिक्तता पाई जाती है ।
यह जिस औषधि में मिला दी जाती है उसी के गुणों को बढ़ा देती है । इसे रसायन , अग्निदीपक , विरेचक , बुद्धिवर्द्धक , हृदय को बल देने वाली , आँखों की रोशनी बढ़ाने वाली , कुष्ठनाशक , स्मृतिकारक तथा इन्द्रियों को प्रसन्नता प्रदान करने वाली बताया गया है ।
हरड़ के फायदे-
इसके सेवन से सिर के रोग , आँखों के रोग , स्वरभंग , जीर्ण ज्वर , पीलिया , हृदयरोग , कामला , मूत्राघात , संग्रहणी , अतिसार , वमन , प्रमेह , श्वास , उदर - रोग , खाँसी , कोष्ठबद्धता , कर्ण - रोग , अर्श , प्लीहा , गुल्म , हिक्का , अरुचि आदि रोग दूर होते हैं । इसमें कषाय रस मुख्य होता है । इसके प्रयोग से पूरे शरीर में रसायन का सा प्रभाव होता है ।
' चरक ' ने हरड़ को स्तम्भन का एक स्तम्भ बताया है अर्थात् जो भाव एक माता में अपने पुत्र के प्रति होते हैं वही गुण हरड़ में भी पाए जाते हैं । जब यह पेट में पहुँच जाती है तो अनेक विकारों का नाश करके व्यक्ति को लाभ पहुँचाती है ।
यदि हरड़ को चबाकर खाया जाए तो यह पेट की अग्नि को बढ़ाती है । इसी प्रकार यदि इसका चूर्ण लिया जाये तो यह मल को शुद्ध करती है तथा जल में औटाकर लेने से यह दस्तों को बन्द कर देती है । भुनी हुई हरड सभी प्रकार के दोषों को दूर भगाने की क्षमता रखती है । इसलिए हरड़ को भोजन के साथ खाना चाहिए ताकि यह बल , बुद्धि और इन्द्रियों को शक्ति प्रदान करे । वात , पित्त , कफ को नष्ट करके यह मल - मूत्र को साफ करती है ।
यदि भोजन के बाद हरड़ का चूर्ण लिया जाये तो इससे तीनों दोष हरड़ नमक के साथ खाने से कफ , खाँड़ ( देशी चीनी ) के साथ खाने से पित्त और घी के साथ खाने से वायु को दूर करती है । इसी प्रकार यदि गुड़ के साथ खाई जाये तो सभी प्रकार के दोष नष्ट हो जाते हैं ।
● मौसम के अनुसार हरड़ को कैसे खाये-
हरड़ को वर्षा काल में सेंधा नमक के साथ , ठडं में खाँड़ के साथ , हेमन्त में सोंठ के साथ , शिशिर में पीपल के साथ , बसन्त में शहद के साथ और गरमी में गुड़ के साथ खाना चाहिए ।
पेट के लिए-
पेट के तरह - तरह के रोग , अग्नि - दोष , मंदाग्नि , पुरानी पेचिश , श्वास - कास् , बिगड़ा जुकाम , तरह - तरह के वात रोग अर्थात् ऐसे रोग जिनको दूर करने के लिए दवा लेते - लेते मनुष्य ऊब गया हो- हरड़ इन सब व्याधियों को दूर करती है । अतः मनुष्य को धैर्यपूर्वक कुछ दिनों तक हरड़ का सेवन करना चाहिए ताकि शरीर के अनेकानेक रोगों से छुटकारा मिल सके । वैद्यों ने इसे औषधियों का महाराजा कहा है।
बहेड़ा-
बहेड़ा त्रिफला में प्रयोग किया जाने वाला तीसरा घटक है । इसका पेड़ मैदानों में पाया जाता है । इसके पत्तों का रूप - रंग बरगद तथा महुआ के पत्तों के समान होता है । बहेड़े के पेड़ पर माघ तथा फागुन में फूल आते हैं और ठडं शुरू होते - होते फल आ जाते हैं । अगहन - पूस तक बहेड़े के फल पक जाते हैं । बहेड़ा भारत के लगभग सभी प्रदेशों तथा म्यांमार ( बर्मा ) के पहाड़ी क्षेत्रों पाया जाता है ।
इसके पेड़ 15 फुट से लेकर 600 फुट तक ऊँचे बहेड़े के प्रकार- यह दो प्रकार का होता है - छोटा बहेड़ा तथा बड़ा बहेड़ा । छोटा फल गोल होता है तथा बड़ा फल छोटे से रंजक द्रव्य पाया जाता है , लगभग दुगना होता है । इनमें गेलीटेनिक एसिड , पीला रंग तथा महर्षि चरक ने लिखा है कि बहेड़ा रस , रक्त और माँस से पैदा होने वाले दोषों को निकाल फेंकता है ।
कषाय , मधुर , रूखा , मधुर विपाक , कफ , पित्त तथा वायुनाशक , रक्त को शुद्ध करने वाला , कष्ट को दूर करने वाला , केश बढ़ाने वाला , आँखों के लिए लाभ पहुँचाने वाला कीड़ों को मारने वाला , साधारण कमजोरी को निकालने वाला तथा खून के विकारों को दूर करने वाला है।
संस्कृत में बहेड़े को ' विमतिक ' कहा गया है ,अर्थात् जिसके भय से रोग भाग जाये , वह बहेड़ा है । कुछ लोग आँवले की तरह बहेड़े का भी मुरब्बा बनाते हैं । यह श्वास के रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है । आयुर्वेद में लिखा है कि जब मल कुपित हो जाता है तो समस्त रोग शरीर को घेर लेते हैं ।
त्रिफला शरीर में उपद्रव मचाने वाले खराब पदार्थों तथा मलों को बाहर निकालता है और शरीर को रोग - रहित बनाकर स्वस्थ रखता है । इसके खाने से उदर विकार नष्ट हो जाते हैं और यह कोष्ठ को स्वच्छ जल के समान कर देता है।
यह शरीर का एक प्रकार से ' ओवर हिलिंग ' कर देता है । इसके बाद शरीर के सारे यन्त्र प्राकृतिक रूप से चलने लगते हैं । यह प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव के माफिक है ।
त्रिफला एक रसायन है -
चरक के अनुसार यह सारे रोगों को भगा देता है । सुश्रुत का कहना है तीनों दोष ( वात , पित्त और कफ नंगे पाँव भागते हैं ।
वागभट्ट ने उल्लेख किया है कि त्रिफला तीनों दोषों को जड़ से मिटा देता है । अतः त्रिफला अपने गुणों के कारण रोगनाशक और रोग - प्रतिरोधक है । त्रिफला में पाँच रस है और तीनों द्रव्य । सभी आयुर्वेदाचार्यों ने त्रिफला को त्रिदोषनाशक बताया है। यह शरीर के विजातीय पदार्थ सम्बन्धी सभी हरण कर शक्ति की वृद्धि करता है । इसका निरन्तर सेवन करने से नेत्ररोग , शिरोरोग तथा चर्मरोग नहीं होते हैं । यह कुष्ठनाशक है । मुख को पवित्र करने में इसका बहुत बड़ा हाथ है ।
त्रिफला तन - बदन को बदल देता है- त्रिफला शरीर के सभी छोटे - मोटे रोगों को जड़ से निकालता है , इसलिए इसे ' विचूर्ण ' भी कहते हैं । इसके सेवन से मनुष्य को देह सुडैल , चिकनी और चमकीली हो जाती है । इसके बाद छोटी - मोटी बीमारियों को शरीर में घर करने का समय ही नहीं मिलता है ।
चरक संहिता में लिखा है कि यदि त्रिफला का चूर्ण नित्य खाया जाये तो अरुचि , तन्द्रा , मूत्रकृच्छ , आलस्य आदि विकार भाग जाते हैं । इस प्रकार त्रिफला प्रत्येक मौसम में लाभकारी है । चरक ने काया को कंचन बनाने के लिए त्रिफला का सेवन घी या शहद के साथ करना उत्तम बताया है ।
त्रिफला शरीर को लोहा बनाता है- -त्रिफला , त्रिकुटा और शुद्ध शिलाजीत - यदि इन तीनों को बराबर मात्रा में लेकर कूट - पीस लिया जाये और शहद के साथ दो चुटकी रोज लिया जाये तो कुछ ही दिनों में शरीर लोहे जैसा हो जाता है । जब वात शरीर पर हमला करती है तो वह रक्त को दूषित कर देती है । उस स्थिति में शरीर में तरह - तरह के रोग भाग जाते हैं।
फोड़े - फुन्सियों से शरीर भद्दा हो जाता है । ऐसी स्थिति में त्रिफला वात को मनाकर शान्त कर देता है । खून को स्वच्छ करके शरीर को चिकना बनाता है । सब प्रकार के कोढ़ , अर्श और पेट के रोगों को त्रिफला बहला - फुसला कर भगा देता है ।
कोष्ठबद्धता , शरीर में जकड़न और सूक्ष्म विकार तो त्रिफला के डर से दूर - दूर इस प्रकार त्रिफला मनुष्य के रोम - रोम को सुख प्रदान करता है ।
यदि इतने पर भी हम त्रिफला से लाभ उठाना नहीं जानते हैं तो हम अपने को धोखा देते हैं और ईश्वर के वरदान को ठुकराते हैं सच पूछा जाये तो त्रिफला का सेवन ही नहीं , पूजन भी करना चाहिए ।
त्रिफला फलों का सम्राट है-
त्रिफला के गुणों को देखकर विद्वानों ने इसे सम्राट की उपाधि से विभूषित किया है । संसार में जितने भी फल पाए जाते हैं सभी थोड़े दिनों में सड़ जाते हैं, परन्तु हरड़ , बहेड़ा और आँवला सडते नही है।
सूखने के बाद यह फल और गुणकारी हो जाते हैं । इनको सालों तक पड़ा रहने दिया जायेगा तो भी सड़न क्रिया नहीं होगी । सूखने के बाद तो ये तीनों फल और त्रिफला रोगों को नष्ट करने के साथ - साथ भूख भी खोलता है ।
आयुर्वेद में त्रिफला को मन - रंजक कहा गया हैं ।
यह स्मृतिकारक , स्वर - भंग को ठीक करने वाला , इन्द्रियों को प्रसन्न करने वाला , शोथ और संग्रहणी का नाश करने वाला है । एक ओर त्रिफला मधुर है तो दूसरी ओर उष्ण वीर्य है । यह उदर में गया हुआ त्रिफला कभी कुपित नहीं होता ।
त्रिफला पेट की अग्नि ठीक करता है-
जब पेट की अग्नि मन्द या ठन्डी पड़ जाती है तो भोजन देर से पचता है और भूख मरने लगती है । जिगर में रस तथा रक्त ठीक से नहीं बनता है ।
उस दशा में मलाशय और मूत्राशय में मल - मूत्र सूखकर जमने लगता है । इसके बाद दूषित वायु दिमाग में चढ़ने लगती है । पेट में वायु भर जाती है और धीरे - धीरे शरीर के अंग खराब होने लगते हैं । उस दशा में लोग तरह - तरह की औषधियों खाकर पेट को ठीक करना चाहते है, परन्तु त्यों - त्यों रोग बढ़ता जाता है।
यदि भोजन से पहले त्रिफला का चूर्ण ले लिया जाये तो पेट ठीक हो जाता है । त्रिफला का चूर्ण पेट की आग को बढ़ाता है और भोजन को ठीक से पचाता है सबसे अच्छी बात तो यह है कि पेट में पड़े मल को सबसे पहले साफ किया जाये । इसके बाद भोजन लिया जाये ।
त्रिफला को कैसे ले -
त्रिफला का चूर्ण प्रातः भोजन से पूर्व तथा शाम को भोजन के बाद लिया जा सकता है । इससे अवश्य ही लाभ होगा और रोता हुआ व्यक्ति हँसता हुआ चला जायेगा
वैज्ञानिक कारण-
साइंस भी त्रिफला का गुणगान करते हैं । अंग्रेज भारत से चले गये पर विदेशी लोग अपने सामने देशी औषधियों के विषय में कुछ भी सुनना नहीं चाहते हैं । लेकिन जब वे अनेकों बीमारियों से तंग आ जाते हैं तो आयुर्वेद की औषधियों के बारे में सोचते हैं ।
उस समय सीधा - सादा त्रिफला का चूर्ण हजारों रोगों को अकेले ही दूर करने के लिए ताल ठोंककर सामने आ जाता है । इसमें नाखून से लेकर सिर के बालों तक को शक्ति प्रदान करने की क्षमता है । त्रिफला का जल पुराने से पुराने कब्ज तथा शरीर के दर्द को दूर करता है ।
इस बात को वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं ।
यदि पेट में कीड़े पड़ गए हों तो त्रिफला और त्रिकुटा को गरम पानी के साथ लेने से सारे कीड़े मर जाते हैं ।
यह मूत्राशय की बदबू को निकालता है । जब डाक्टर जबाव दे देता है तो त्रिफला काम करता है । त्रिफला के चूर्ण को यदि गौ - मूत्र के साथ लिया जाये तो पेट के समस्त विकार दूर हो जाते हैं ।
निष्कर्ष - आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला को एक मनुष्य के लिए अमृत के समान बताया गया है ।यह एक आयुर्वेदिक औषधि है इसका नुकसान कुछ भी नहीं है बल्कि लाभ ही लाभ है ।अगर आप की समस्या बहुत ज्यादा गंभीर है फिर आप अपने नजदीकी डॉक्टर से सलाह करके ही कोई दवाई ले।
डिस्क्लेमर-
यह सब कुछ जो भी हमने लिखा है, यह सब आयुर्वेद के अनुसार लिखा गया है। यह एक सामान्य जानकारी है. जो आप तक पहुंचाने की कोशिश की है।
Posted by kiran
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