महालक्ष्मी पूजन" कैसे करें | दिवाली की पुजा कैसे करें | diwali festival

 दिवाली पर श्री महालक्ष्मी पूजन" कैसे करें -

हमारे हिंदू धर्म में दिवाली का त्योहार सबसे बड़ा दिन माना जाता है और यह लगभग पूरे भारत में मनाया जाता है।  दिवाली के त्योहार पर ऐसा कोई गाँव या शहर नहीं होगा जहाँ पर दिवाली नहीं मनाई जाती है। दिवाली को पूरे धूमधाम और घर को सजाकर सेलिब्रेट करते हैं आइए जानते हैं कि दिवाली पर इस प्रकार माँ लक्ष्मी की पूजा करें-

 Diwali puja-

दिवाली और धनतेरस , कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वन्तरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। यम देवता की प्रसन्नता के लिए इस दिन सरसों के तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है, जिससे अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। इस पर्व पर नए बर्तन, चांदी और सोने की खरीददारी को भी शुभ माना जाता है।



लक्ष्मी जी के उपासकों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:

  1. हीन उपासक: जो लक्ष्मी जी का उपभोग करते हैं, लेकिन उनके पास लक्ष्मी टिकती नहीं।

  2. मध्यम उपासक: जो लक्ष्मी को मां मानते हैं, लेकिन दान-पुण्य नहीं करते।

  3. उत्तम उपासक: जो लक्ष्मी को अपनी माता या बेटी मानते हैं, और पुण्य कार्यों में धन खर्च करते हैं। ऐसे उपासकों के घर में लक्ष्मी हमेशा वास करती हैं।

श्री महालक्ष्मी पूजन: महालक्ष्मी, समृद्धि, सिद्धि और संपत्ति की देवी हैं। गणेश जी, बुद्धि और शुभता के देवता हैं। इन दोनों की विशेष पूजा कार्तिक कृष्ण अमावस्या को की जाती है। पूजा के लिए स्वच्छ स्थान का चयन करें और लक्ष्मी जी को गणेश जी के दाहिने ओर स्थापित करें।

पूजन सामग्री में केसरयुक्त चंदन से अष्टदल कमल बनाएं और धन (रुपये) भी रखें। लक्ष्मी जी के लिए कमल का फूल, सिन्दूर और खीर का भोग प्रिय है। पूजा में तुलसी का उपयोग वर्जित है और आसन पीले रंग का होना चाहिए।

सर्वप्रथम पवित्रता का ध्यान रखें और संकल्प लेकर पूजा का प्रारंभ करें। भगवान गणेश और महालक्ष्मी का पूजन विधिपूर्वक करें।

इस प्रकार से पूजन करने से सभी कल्याण, मंगल और आनंद की प्राप्ति होती है।

पूजन का संकल्प कैसे करें

(1) संकल्प विधि:
ॐ विष्णु मासोत्ते मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायामामावस्या तिथौ अमुक वासेरे अमुक गोत्रोत्पन्नः अमुक नाम शर्मा (वर्मा, गुप्त, दसै)। मैं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलावपतिकामना और ज्ञान के अनुसार लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु श्री महालक्ष्मी की पूजा और कुबेर आदि का पूजन करने का संकल्प लेता/लेती हूँ।

(2) यह संकल्प करते समय जल और अक्षत लेकर गणेश जी के दर्शन करें:
ॐ मनो जूतिर्जुष्ठामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु।

 विश्वे देवास इस मदयन्तासोइम्प्रतिष्ठ। ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठान्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमार्च्य मामेहति च कश्चन।

(3) इस प्रकार भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें। इसके बाद नवग्रह, षोडश मातृका और कलश का पूजन करें।

(4) इसके पश्चात प्रधान पूजा में भगवती महालक्ष्मी का पूजन करें। पूजा से पूर्व नई प्रतिमा और द्रव्य लक्ष्मी की 'ॐ मनो जूति' तथा 'अस्यै प्राणः' मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठा करें।

(5) महालक्ष्मी जी का ध्यान इस प्रकार करें:
"विपुलकटि, पद्यपत्रयताक्षी, गंभरावर्तनाभिधान, शुभ्र वस्त्र धारण करने वाली, लक्ष्मी, दिव्य रूप से मंडित, मणियों से सजी, नित्य पद्महस्ता, मेरे घर में सर्वमांगल्ययुक्ता।"
ॐ हिरण्यवर्ण हरिणीं सुवर्णार्जतसर्जम्।
चन्द्रां हिरण्यमयं लक्ष्मीं जातवेदों मा आ वह।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
(ध्यान के लिए पुष्प समर्पित करें, जो निर्विकल्पी हो।)

 दिवाली पर देहलीविनायक पूजन कैसे करें-

व्यापारिक प्रतिष्ठानों की दीवारों पर 'ॐ श्रीगणेशाय नमः', 'स्वस्तिक चिन्ह', 'शुभ-लाम' जैसे मांगलिक शब्द सिन्दूर से लिखे जाते हैं। इन शब्दों के ऊपर 'ॐ देहलीविनायकाय नमः' नाम मंत्र से गंध और पुष्प से पूजन करें।

श्री महाकाली (दवात) पूजन

स्याही से भरी दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प और अक्षत के साथ रखें। दवात पर सिन्दूर से स्वास्तिक बनाएं और मौली लपेट दें। 'ॐ महाकाल्यै नमः' इस नाम मंत्र से दवात में भगवती महाकाली का पूजन पञ्चोपचारों या षोडशोपचारों से करें। अंत में प्रार्थना करें:

"कालिके! त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे। उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये। या कालिका रोगहरा, सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहारदक्षैः। जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता, मम सौख्यदास्तु।"

लेखनी पूजन

लेखनी (कलम) पर घौली बांधकर उसे सामने रखें। 'लेखनी निर्मिता पूर्व ब्राह्मणा परमेष्ठिना। लोकानां च हितार्थाच तस्मात्तां पूजयाम्यहम्।' इस मंत्र से गंध, पुष्प, अक्षत आदि से पूजन करें और प्रार्थना करें:

"शास्त्रणां व्यवहाराणा विद्यानामाप्नुयाद्यतः। अतस्त्यां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भय।"

सरस्वती (पञ्जिका-बही-खाता) पूजन

पञ्जिका बही और थेली में रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वास्तिक बनाएं। थेली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखें और उसमें सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती जी का ध्यान इस प्रकार करें:

"या कुन्देन्दुतुषारहारूवला, या शुभ्रवस्त्रावृता, या वीणावरदण्डमण्डितकरा, या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिर्देवैः सदा वन्दिता, सा मां पातु सरस्वती भगवती, निःशेषजाडापहा।"

'ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः' इस नाम मंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन करें।

कुबेर पूजन

तिजोरी या पैसे रखने वाले संदूक को स्वस्तिक आदि से अलंकृत करें और उसमें निधिपति कुबेर का आवाहन करें:
"आवहामि देव त्यामिहायामि कृपां कुरू। कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।"

आवाहन के बाद 'ॐ कुबेराय नमः' इस नाम मंत्र से पूजन करें और अंत में प्रार्थना करें:

"धनदाय नमस्तुभ्यं, निधिपद्माधिपाय च। भगवान्, त्वत्प्रसादेन धनधन्यादिसम्पदः।"

इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्व पूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य और दूर्वा से युक्त थेली तिजोरी में रखें।

तुला तथा मशीन आदि की पूजा

सिन्दूर से तराजू पर स्वास्तिक बनाएं। मौली लपेटकर तुलाधिष्ठातृ देवता का ध्यान करें:
"नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता। साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।"

ध्यान के बाद 'ॐ तुलाधिष्ठातृदेवातायै नमः' इस नाम मंत्र से गंध, अक्षत आदि उपचारों द्वारा पूजन करें और नमस्कार करें।

दीपमालिका (दीपक) पूजन



किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे आधी संख्या में दीपक रखें और उन्हें लक्ष्मी के समीप रखें। दीप ज्योति के मंत्र से उनका पूजन करें और प्रार्थना करे हे माँ लक्ष्मी इसी प्रकार हर साल मेरे घर में खुशियां और बरकत लेकर आती रहना है।

इस प्रकार प्रार्थना करें:

"त्व ज्योतिस्त्व रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः। सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः।"

दीपमालिकाओं का पूजन करके अपने आचार के अनुसार संतरा, ईख, पानी, धन का लावा आदि पदार्थ चढ़ाएं। धन का लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी और अन्य देवी-देवताओं को अर्पित करें। अंत में, अन्य दीपकों को प्रज्वलित कर घर को सजाएं।

प्रधान आरती करने से पहले भगवती महालक्ष्मी और उनके सभी अंगों का पूजन करें। इसके लिए एक थाली में स्वास्तिक और अन्य मांगलिक चिन्ह बनाकर अक्षत और पुष्पों के आसन पर किसी दीपक में घृत युक्त बत्ती प्रज्वलित करें। एक अलग पात्र में कर्पूर भी जलाएं और उसे थाली में रखें। आरती थाल के जल से प्रोक्षण करें। फिर आसन पर खड़े होकर परिवार के अन्य सदस्यों के साथ घंटी बजाते हुए निम्न आरती गाएं:

"ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्व साध्याः सन्ति देवाः।"

"ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स में कामान् कामकामाय महां कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।"

"कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।"

"ॐ स्वरित साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्य पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराजयमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः सार्वायुषान्तादापरार्थत्।"

"पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरूतः रिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे।"

"आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति।"

"ॐ विश्वतश्चक्षुरूत विश्वतोमुखों विश्वतोबाहुरूत विश्वतस्पात्। सं बाहुभ्यां धामति सं पतत्रेर्यावाभूमी जनयन् देव एकः।"

"महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रयोदयात्।"

"ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि। श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्।"

"ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलि समर्पयामि।" (हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)

प्रदक्षिणा करें और साष्टांग प्रणाम करें। फिर हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें:

"क्षमा प्रार्थना नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये। या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा में भूयात्त्वदर्चनात्।"

"आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनाम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।"

"मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण।"

विसर्जन पूजन


"त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविण त्वमेव, त्वमेव सर्व मम देवदेव।"

"पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः। त्राहि मां परमेशानि सर्वपापहरा भव।"

"अपराधसहस्त्राणि क्रियान्तेऽहर्निशं मया। दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।"

"सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्ध्माल्यशोभे। भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।"

प्रणाम करके "ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मीः प्रसीदतु" यह कहकर जल छोड़ दें। ब्राह्मण और गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरित करें।

विसर्जन पूजन के अंत में हाथ में अक्षत लेकर नूतन गणेश और महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित और पूजित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करें:

"यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्। इष्टकामसमृद्धयर्थ पुनरागमनाय च।"








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