राजा, भाग्य और नीलकमल की कथा"
हमारे देश भारत में अनेक अद्भुत कथाएँ प्रचलित हैं—कुछ ऐतिहासिक, कुछ पौराणिक और कुछ ऐसी जिनमें जीवन के गहरे सत्य छिपे होते हैं। ऐसी ही एक कथा है एक राजा, एक तपस्वी, एक नीलकमल और भाग्य की।
राजमहल में सूनी गोद और एक अदृश्य योजना
बहुत समय पहले एक राज्य में एक राजा और रानी राज्य किया करते थे। उनका राज्य सम्पन्न था, प्रजा सुखी थी, परंतु उनका जीवन अधूरा था—क्योंकि उनके आँगन में कोई बालक नहीं था। रानी की गोद सूनी थी, और उसका हृदय ममता की चाह में हर रोज़ तड़पता था।
रानी बार-बार राजा से कहती, “मेरी गोद सूनी है, यदि कहीं से कोई बच्चा मिल जाए तो मेरी मुराद पूरी हो जाए।” राजा इस बात को टालता रहता, पर रानी के आँसुओं ने अंततः उसका हृदय पिघला दिया।
राजा ने अपने मंत्री से कहा कि कोई ऐसा उपाय किया जाए जिससे एक बालक को राजमहल लाया जा सके, लेकिन बिना यह जाने कि वह किसी गरीब का बेटा है। मंत्री ने योजना बनाई—राज्य में घोषणा कर दी गई कि रानी माँ बनने वाली हैं। राज्य भर में यह खबर फैल गई और लोग उत्सव मनाने लगे।
एक गरीब का पुत्र और उसका राजमहल में प्रवेश
उसी समय एक गरीब परिवार में एक सुंदर बालक का जन्म हुआ। मंत्री ने बहुत सा धन देकर वह बालक ले लिया और महल ले आया। कुछ ही दिनों में पूरे राज्य में उत्सव हुआ—"राजकुमार का जन्म हुआ है!" महल में वह बालक रानी की गोद में आ गया, और रानी की ममता को उसका आधार मिला।
बचपन बीता, बालक बड़ा हुआ। वह तेजस्वी, विनम्र और गुणवान था। पूरे राज्य में उसकी प्रशंसा होने लगी। पर एक चीज़ थी जो राजा के हृदय में कभी मिट नहीं पाई—उसका अहंकार। वह हर बार मन ही मन कहता, “मैंने इसे राजा बनाया है। मेरे धन, मेरे निर्णय से यह यहाँ है। यह गरीब का बच्चा था।”
सत्ता का हस्तांतरण और कटुता का आरंभ
समय बीता, राजा वृद्ध हुआ और उसे अपनी गद्दी उत्तराधिकारी को सौंपनी पड़ी। वह बालक अब युवा था और राज्य का राजा बना दिया गया। मगर राजा का मन अब भी इस बात से मुक्त नहीं था कि वह बच्चा उसका नहीं था।
राजा कई बार दरबार में कह देता—“यह तो मेरी दया है जो इसे गद्दी मिली, वरना इसकी औकात ही क्या थी!” रानी समझाती, “भाग्य भगवान लिखते हैं, इंसान नहीं। तुम उसके कर्म और संस्कारों को देखो।” लेकिन राजा का अहंकार उसे अंधा कर चुका था।
दरबार की चेतावनी और वनवास की शुरुआत
राजा के कटु वचनों से दरबारियों को भी आपत्ति हुई। उन्होंने कहा, “आप अब राजा नहीं हैं, और वर्तमान राजा का अपमान पूरे राज्य का अपमान है।” स्थिति इतनी बिगड़ गई कि दरबार ने उन्हें राज्य छोड़ने का आदेश दे दिया।
राजा और रानी, राजमहल से निकलकर जंगल की ओर चल पड़े। राजा मन ही मन बड़बड़ाता जा रहा था—“मैंने इसे राजा बनाया और देखो आज मुझे ही निकाल दिया!” रानी ने समझाया, “वह तुमसे आज भी प्रेम करता है, पर तुमने उसके आत्मसम्मान को बार-बार ठेस पहुँचाई है।”
नीलकमल और वापसी की आशा
जंगल में भटकते-भटकते राजा एक दिन नदी के किनारे पहुँचा। वहाँ उसने देखा—एक नीलकमल नदी की धारा में बहता आ रहा है। वह फूल बड़ा सुंदर था, अद्भुत, दुर्लभ। राजा ने सोचा—“मेरा बेटा शिवजी का भक्त है। यह फूल उसे दे दूँगा। वो प्रसन्न होगा और शायद मुझे महल में रहने दे।”
राजा ने फूल लेकर अपने बेटे के पास गया। राजा ने फूल सौंपा। नया राजा मुस्कराया और कहा—“आपके कारण मेरी आराधना सफल होगी। लेकिन मैं यह फूल अकेले अर्पण नहीं कर सकता। मेरी पत्नी भी शिवभक्त है। कृपया ऐसा ही एक और फूल ले आइए।”
यह सुनते ही बूढ़े राजा का मन खिन्न हो गया। वह गुस्से से बड़बड़ाता हुआ लौट आया—“मैं अब इसका सेवक बनूं? ये किसकी संतान है, मैं जानता हूँ! आज मुझे आदेश दे रहा है!”
रानी की सूझबूझ और तपस्वियों का रहस्य
रानी ने फिर धैर्य से कहा, “एक फूल नदी में बहता आया है तो ज़रूर कोई सरोवर होगा जहां और भी होंगे। चलो, खोजें।” दोनों दिन-रात नदी किनारे चलते रहे। अंततः एक पहाड़ी के पास एक तालाब मिला, जिसमें नीलकमल खिले थे। बीच में एक टापू था, जहाँ तीन आसन और धूनी जल रही थीं। दो तपस्वी वहां बैठे थे, एक आसन खाली था।
राजा और रानी ने हाथ जोड़कर कहा, “हम पूर्व राजा हैं। अब दुख और पश्चाताप में भटक रहे हैं। मेरे पति ने अपने पुत्र से कटुता कर दी और अब वनवासी हैं।”
तपस्वियों ने मुस्कराकर कहा, “हम जानते हैं तुम कौन हो। पर तुम हमें नहीं पहचान पाए।”
पिछले जन्म की सच्चाई और मोक्ष की भविष्यवाणी
फिर उन्होंने बताया—“हम तीनों भाई थे, तपस्वी। तीसरे भाई को अहंकार हो गया कि ‘मैं सब कर सकता हूँ।’ उस अहंकार में वह पर्वत से गिरा और उसकी मृत्यु हो गई। उसने गरीब घर में जन्म लिया और तपस्या के फलस्वरूप इस जन्म में राजा बन गया।”
“तुम्हारे पालने से नहीं, उसके तप से वह राजा बना है। पर वह अब भी पूर्ण नहीं है। जब वह अपने भीतर की पुकार सुनेगा, तब यहां आएगा। नीलकमल की खोज उसे फिर यहां लाएगी। तब हम उसे उसका आसन याद दिलाएँगे, और तीनों भाई एक साथ मोक्ष को प्राप्त करेंगे।”
कथा का सार: भाग्य, तप और विनम्रता का पाठ
उन्होंने कहा—“राजन्! इंसान किसी का भाग्य नहीं लिखता। वह ऊपरवाला ही है जो हर किसी को उसका हक देता है। जो तुमने किया, वह माध्यम मात्र था। अधिकार, सत्ता—ये सब समय के साथ आते और चले जाते हैं। इसलिए सच्चा राजा वह है जो अहंकार से नहीं, विनम्रता सेशासन करता है।”
"जीवन का संदेश"
इस कथा से हम सीखते हैं कि:
अहंकार इंसान को अंधा कर देता है।
कर्म और तप ही सच्चा भाग्य बनाते हैं।
सत्ता स्थायी नहीं होती, विनम्रता ही स्थायित्व देती है।
हर आत्मा का लक्ष्य है—मोक्ष की ओर बढ़ना, न कि संसार के मोह में उलझना।
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